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________________ षडावश्यकबालावबोधवृत्ति [$117 - 118 ). १५१ अंतिम चूलाण तियं सोलस अट्ठ नव अक्खरजुयं च। इय अहसहि अक्खर परिमाणो होइ नवकारो॥ [१५१] $117) उपधान विधान पाखइ पंच परमेष्ठि नमस्कार ई.पथिकी चैत्यवंदनसूत्र विधिवत् समाराधित न हुयइं, तिणि कारणि प्रस्तावइतउ उपधान तपोविधान विधि पुणि लिखियइ । 5 पंचमंगल महाश्रुतस्कंधि पांच वीसामा पांच अध्ययन कहियइं। बीजा त्रिन्हि वीसामा त्रिन्हि चूलिका कहियई । तत्रापि बिउं वीसामे एक चूलिका, एक वीसामइ बि चूलिका हुयई । शक्ति हूंती एकनिरंतरे पांचे उपवासे कीधे पहिली वाइणि पांच अध्ययन लाभई । तथा एकनिरंतरे आठे आंबिले त्रिहुं उपवासे कीधे बीजी वाइणि त्रिन्हि चूलिका लाभई । शक्ति असंभवि एकांतरे पांचे उपवासे वाइणि पहिली । एकांतरे साते उपवासे बीजी वाइणि । एवंकारइ पहिलइ पंचमंगल महाश्रुतस्कंध तणइ उपधानि 10 उपवास १२ कीजई। $118) बीजइ ईर्यापथिकी श्रुतस्कंधि आठ वीसामा आठ अध्ययन कहियई । तत्र शक्तिसंभवि एकनिरंतरे उपवासे पांचे कीधे, शक्तिअसंभवि एकांतरिते पांचे उपवासे कीधे पहिली वाइणि पांच अध्ययन (२४) इच्छापि पडिक्कमिडं इरियावहीयाए विराहणाए । गमणागमणे । 15 पाणकमणे बीयकमणे हरियकमणे ३। उसा उत्तिंग पणग दग मट्टी मक्कडा संताणा संकमणे ४॥ जे मे जीवा विराहिया ५। एवंरूप लाभई । तथा शक्तिसंभवि एकनिरंतरे आठे आंबिले त्रिहुं उपवासे कीधे हूंते, शक्तिअसंभवि एकांतरि साते उपवासे कीधे हूंते (२५) एगिदिया बेइंदिया तेइंदिया चरिंदिया पंचिंदिया ६॥ अभिहया 20 वत्तिया लेसिया संघाया संघट्टिया परियाविया किलामिया उद्दविया ठाणाओ ठाणं संकामिया जीवियाओ ववरोविया तस्स मिच्छा मि दुक्कडं ७ तस्सुत्तरीकरणेणं पायच्छित्तकरणेणं विसोहीकरणेणं विसल्लीकरणेणं पावाणं कम्माणं निग्धायणहाए ठामि काउस्सग्गं ८ ___ए त्रिन्हि अध्ययन बीजी वाइणि लाभई । एवंकारइ बीजइ ईर्यापथिकी श्रुतस्कंध तणइ उपधानि 25 उपवास १२ कीजई। तथा त्रीजइ भावाहतस्तव श्रुतस्कंधि नव वीसामा नव अध्ययन कहियई । शक्तिसंभवि एकनिरंतरे त्रिहुं उपवासे कीधे हूंते, शक्तिअसंभवि एकांतरिते त्रिहुं उपवासे कीधे हूंते (२६) नमोऽत्थुणं अरहंताणं भगवंताणं । आइगराणं तित्थगराणं सयंसंबुद्धाणं २पुरिसुत्तमाणं पुरिससीहाणं पुरिसवरपुंडरीयाणं पुरिसवरगंधहत्थीणं ३॥ ए त्रिन्हि अध्ययन पहिली वाइणि लाभई । तथा शक्तिसंभवि एकनिरंतरे सोले आंबिले कीधे 30 हूंते, शक्तिअसंभवि एकांतरिते आठे उपवासे कीधे हूंते _ (२७) लोगुत्तमाणं लोगनाहाणं लोगहियाणं लोगपईवाणं लोगपज्जोयगराणं ४॥ अभयदयाणं चक्खुदयाणं मग्गदयाणं सरणदयाणं बोहिदयाणं ५। धम्मदयाणं धम्मदेसयाणं धम्मनायगाणं धम्मसारहीणं धम्मवरचाउरंतचक्कवट्टीणं ६॥ ___ ए त्रिन्हि अध्ययन बीजी वाइणि लाभई । तथा शक्तिसंभवि एकनिरंतरे सोले आंबिले कीधे 35 हूंते, शक्तिअसंभवि एकांतरिते आठे उपवासे कीधे हूंते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003394
Book TitleShadavashyaka Banav Bodh Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabodh Bechardas Pandit
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1976
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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