________________
४३
15
115-8116). १४०-१५०] श्रीतरुणप्रभाचार्यकृत वृत्तिकर' अविरतसम्यग्दृष्टिनामकि चउथइ गुणठाणइ वर्तइं। श्री संघु पुणि साधु साध्वी तणी अपेक्षा करी अप्रमत्तनामकि सातमइ, प्रमत्तनामकि छट्ठइ गुणठाणइ वर्तइ । श्रावक श्राविका नी अपेक्षा करी विरताविरतनामकि पांचमइ गुणठाणइ वर्त्तइ । तिणि कारणि वैयावृत्यकरहं कन्हा साधु-साध्वी-श्रावकश्राविकालक्षणु संधु गुणे करी अधिकु । तिणि कारणि तीहं रहई सम्यग्दृष्टिता करी साधम्मिक भावइतउ तथा महर्द्धकत्वइतउ काउस्सग्गु मात्रु कीजइ गीतार्थाचीर्णभावइतउ । 'अन्नत्थूससिएणं' इत्यादि । पूर्ववत् । एउ वेयावञ्चगर काउस्सग्गरूपु बारमउ अधिकारु । तथा च अधिकारआदिपदावयवसूचा
नमु १ जे २ अरहं ३ लोगो ४ स ५ पुक्ख ६ तम ७ सिद्ध ८ जो ९ उ १० चत्ता ११ चे १२ । पढमा पइक्कदेसा अहिगाराणं मुणेयव्वा ।।
[१४०] 10 दुन्ने १ गं २ दुनि ३ दुर्ग ४ पंचेव ५ कमेण हुंति अहिगारा । सकत्थयाइसु इहं थोयव्वविसेसविसयाओ ॥
[ १४१] पढमम्मि य अहिगारे भावरिहंताण वंदणा भणिया । दव्वरिहाणं बीए तइए ठवणापरिहाणं तु ॥
[१४२] नामऽरिहाण चउत्थे ठवणरिहाणं च पंचमे तह य । भावरिहाणं छठे सत्तमए बारसंगस्स ॥
[१४३] अट्ठमए सिद्धाणं नवमम्मि य वद्धमाणसामिस्स । दसमम्मि य तित्थाणं चउवीसजिणाणमिगदसमे ॥
[ १४४ ] वेयावच्चगराण य उस्सग्गो बारसम्मि अहिगारे । अरिह १ सुय २ सिद्ध वेयावच्चगरा संथुया एवं ॥
[१४५] 20 इह नव अहिगारेहिं चउविह जिण संथुया सुभत्तीए । सुय सत्तम सिद्धऽट्ठम वेयावच्चा य बारसमे ॥
[१४६] उज्जोयाइसु तिसु दंडएसु पयसंपयाउ तुल्लाओ । छंदाणुसारओ चिय नायव्या बुद्धिमंतेहिं ॥
[१४७] $116) अथ पंचपरमेष्ठि नमस्कार ईर्यापथिकी सूत्र तथा चैत्यवंदन सूत्र तणी जि पूर्विहिं संपदा 25 कही ति सगलीय इ एकगाथा माहि कहइ
अट्ठऽ8 नवऽटु य अहवीस सोलस य वीस वीसामा । मंगल इरियावहिया सक्कत्थयपमुहदंडेसु ॥
[१४८] अद्वैव संपयाओ मंगलगे नव पयाण तह पढणं । पयतुल्ल सत्त संपय दुपयल्ला होइ अट्टमिया ॥
[१४९] 30 अरहंत सत्त अक्खर पंच य सिद्धाण सूरिणो । सत्त उवज्झाय सत्त अक्खर नव अक्खर संजुया साहू ॥ [१५० ]
$115) 1 Bh. वैयावृत्य ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org