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३८ षडावश्यकबालावबोधवृत्ति
[ 99 - $101). १२१ ईहां सिद्धशद्ब सवहीं पदहं संबंधियइ । यथा ऋषभादिकह जिम जि तीर्थकर हूंता सिद्धि गया ति तीर्थकरसिद्ध १ । गौतमादिकहं जिम सामान्य केवलज्ञानिया थिका जि सिद्धि गया ति अतीर्थकरसिद्ध २ । तीथु चतुर्विधु, चतुर्विधु संघु तिणि प्रवर्त्तमानि हूंतइ जि मुक्ति गया जंबूस्वामीप्रमुखहं जिम
ति तीर्थसिद्ध ३ । तीर्थ अप्रवृत्ति हूंतइ मरुदेवीस्वामिनी जिम जि मुक्ति गया ति अतीर्थसिद्ध ४ । 5 गृहलिंगि वर्तमान हूंता मरुदेवी जिम जि मोक्षि' गया ति गृहलिंगसिद्ध ५ । सम्यक्त्व परिणामइतर
स्वलिंगसंप्राप्त हूंता आयुःक्षयि हूंतइ जि मुक्ति गया ति अन्यालिंगसिद्ध ६। रजोहरण मुखवस्त्रिकारूपु द्रव्यलिंगु । ज्ञानदर्शनचारित्रप्रकर्षपरिणामरूपु भावलिंगु द्विविधू स्वलिंगु कहियइ । तिणि हूंतइ जि मुक्ति गया ति स्वलिंगसिद्ध ७ । मरुदेवी जिम जि स्त्री थिका मुक्ति गया ति स्त्रीसिद्ध ८ । नर थिका जि मुक्ति गया ति नरसिद्ध ९ । नपुंसक बिहुं भेदे । जातिनपुंसक, कर्मनपुंसक भेदतउ। तत्र जातिनपुंसक 10 चारित्रपरिणाम तणा अभावइतउ मुक्ति न जाइं, कर्मनपुंसक पुणि चारित्रपरिणाम सद्भावइतउ मुक्ति जाई, तिणि कारणि जि नपुंसक थिका मुक्ति गया ति नपुंसकसिद्ध १० । करकंडु द्विमुख नमि नगगति प्रमुखहं जिम वृषभ आम्रद्रुम एकवलय महेंद्रध्वजादि एकैकवस्तु सारासारता विचारइतउ जातिस्मरणइतउ प्रतिबोधु लही चारित्रु प्रतिपाली केवलज्ञानु ऊपाडी जि मुक्ति गया ति प्रत्येकबुद्ध सिद्ध ११ । सर्वतीर्थकर सिद्ध १२ । गुरु कन्हा प्रतिबोधु लही करी जि मुक्ति गया ति बुद्धबोधित सिद्ध १३ । श्री महावीर जिम जि एकला सिद्धि गया ति एकसिद्ध १४ । श्री ऋषभ जिम अनेकहं सउं एक समइ जि सिद्धि गया ति अनेकसिद्ध १५ । तथा च भणितं
उसहो उसहस्स सुया भरहेण विवजिया य नवनवई । भरहस्स य अट्टसुया सिद्वा एगमि समयंमि ॥
[१२१] तीहं निमित्तु माहरउ सदा नमस्कारु हुउ । एउ सिद्धस्तवरूपु आठमउ अधिकारु ।
899) अथानंतर आसन्नोपकारिता लगी श्री वीरस्तुति भणइ । 'जो देवाण वि देवो' इत्यादि । जु देवभवनपत्यादिक तीहं नउ पूज्यत्वइतउ देवु 'यं देवाः प्रांजलयो नमस्यंति' । जेह रहइं हाथे जोडे देव नमस्कार करइं सु देव देवमहितु शक्रमहितु'। 'शिरसा' मस्तकि करी महावीरु चरमतीर्थकरु हउं 'वंदे' वांदउं।
$100) नमस्कार फलदर्शननिमित्तु भणइ । 'इक्कोवी' त्यादि । एकू नमस्कार घणा नमस्कार सु 25 परहउं छउ । के हि नउ एकु नमस्कारु 'जिणवरवसहस्स वद्धमाणस्स' जिन उपशांत मोहादिक तीहं माहि वर केवलज्ञानी तीह माहि तीर्थकर नाम कर्मोदयवसइतउ वृषभु प्रधानु जिनवरवृषभु। तेह नउ नमस्कार । सु कउणु वद्धमाणु ? तेह नउ किसउं करइ ? इत्याह-'संसारे' त्यादि । संसारसागर भवसमुद्रु तेह नउ तारइ उतारइ । कहि रहई ? ' नरं वा नारिं वा' -नरु पुरुषु नारी स्त्री तीहं बिहुं रहइं धर्म रहइं पुरुषोत्तमत्व भणिवा कारणि नरग्रहणु। स्त्री रहइं तिणि हिं जि भवि मुक्तिसंभव 30 निमित्तु नारीग्रहणु कीधउं, न पुणि किहां ई स्त्री रहइं मुक्तिगमनु निषिद्ध छइ । मुक्तिगमनकारणु ज्ञानदर्शनचारित्रप्रकर्षु सु जिम पुरुष रहई छइ तिम स्त्री रहइं पुणि छइ इति संपूर्णकारणभावइतउ पुरुष जिम स्त्री रहइं पुणि मुक्ति ।
$101) 'छटिं च इत्थियाओ' इसा वचनइतउ उत्कर्षहीतउ स्त्री रहई छट्ठी नरक पृथिवी सीम गति छइ । न सप्तम नरकभूमिगमनु । तिम उपरि मुक्ति गति पुणि नहीं हुयइ इसउं न कहिवू,
899) 1 Bh. शक्रपूजितु। $100) 1 Bh. adds प्रधानु ।
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