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________________ 10 $102-$106). १२२-१२८] श्रीतरुणप्रभाचार्यकृत नहि इसउं कांई छइ । जेह रहइं हेठइ थोडी गति तेह रहइं ऊपरि पुणि थोडी गति हुयइ । भुजि करी परिसर्पइं हिंडई इति भुजपरिसर्प गोह नकुलादिक जीव, ति हेठइ बीजी नरकभूमि सीम उत्कर्षइतउ जाइं । पांखिया गृध्रादिक उत्कर्षइतउ त्रीजी सीम । सिंह चउथी सीम । उरि हियइ करी हिंडई इति उरग साप, पांचमी सीम जाई, 'न छहिं, न सत्तमि वा' जाई, तथाविध कर्मबंध तणा अभावइतउ । ऊपरि पुणि सगलाई भुजपरिसादिक जीव सहस्रारु आठमउ देवलोकु तेह सीम जाई । तिम स्त्री 5 पुणि हेठइ छट्ठी सीम जाइं ऊपरि पुणि मुक्तिइं जाइं तिसइ गति विषमता भावि हूंतइ स्त्री पुरुष कर्मनपुंसकरूप सर्वजीवहं रहइं मुक्तिगमन सीधउं । $102) एउ श्री सिद्धार्थस्तवरूपु नवमउ अधिकारु । ए त्रिन्हि स्तुति गणधरेंद्रहं कीधी तिणि कारणि निश्चइसउं पढियई। आवश्यकचूर्णिण माहि कहिउं–'सेसो जहिच्छाए' त्ति । $103) उजिंतसेलसिहरे दिक्खानाणं निसीहिया जस्स । ___ तं धम्मचक्कवदि अरिट्टनेमि नमसामि ॥ [१२२ ] उजयंत शैल शिखरि दीक्षाज्ञान नैषेधकी मुक्ति तल्लक्षणे त्रिन्हि कल्याणिक जेह रहइं हूयां, सु धर्मचक्रवर्ति अरिष्टनेमि 'नमंसामि' नमस्करोमि नमस्करउं । एउ नेमिस्तवरूपु दसमउ अधिकारु । $104) अत्राम्नायवचनु काई एकु लिखियइ । पूर्विहिं श्री उज्जयंत महातीर्थै दिगंबरे अधिष्ठिउं 15 हूंतउं संघ कन्हा ऊदालिवा आरंभिउं । संघ काउस्सग्गानुभावि आकंपिता श्री शासनदेवता राजसभा माहि दूराकृष्ट कन्यामुखि 'उजिंतसेलसिहरे' इत्यादि गाथा चेत्यवंदन सूत्रमध्यगत करी आपी । तेह दिवस लगी संघि पढियइ । इणि कारणि ए गाह पुणि आगमरूप हुई। $105) तथा 'चत्तार' इत्यादि, 'परमट्ठ निट्ठियट्ठा' इति परमार्थि करी तत्ववृत्ति करी, न पुणि कल्पना करी निष्ठित संपूर्ण अर्थ, संसारप्रयोजन जीह रहई हूयां ति परमार्थनिष्ठितार्थ कहियई । 20 बीजउं सुगमु । एउ इगारमउ' अधिकारु। 8106) इंहां आम्नायगतु काईएकु लिखियइ चत्तारि अट्ठ दस दो वंदिया जिणवरा चउव्वीसं । नवगं चउवीसीणं विवरणमिह किंचि निसुणेह ॥ [ १२३] चउ अट्ठ गुणा बत्तीस हुंति दस दुगुण हुंति वीसा य । 25 एवं जीणबावन्नं वंदे नंदीसरे दीवे ॥ [१२४ ] चत्ताअरिओ जेहिं चत्तारि पयस्स होइ अत्थोयं । अट्ठ दस दो य मिलिया जहन्नपय वीस वंदामि ।। [ १२५] चत्तारि जहापुट्विं दस अट्ठगुणा असी हवइ एवं । पुण वि असी दोगुणिया सहिसयं नमह विजएसु ॥ [१२६] 30 चउ अट्ठ भवे बारस दसगुणा सयं वीसं । सो दोहि गुणिजंतो दुन्नि सया हुंति चालीसा ॥ [१२७] भरह-एरवएसु जिणा दस चउवीसी य वट्टमाणाओ। मण-वय-काएण तिहा तेसिं वंदामि भत्तीए ॥ [१२८] $102) 1 Bh. पढिई। $103) 1 B. has dropped -क्ष- 1 05)1 Bh. इग्यार-। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003394
Book TitleShadavashyaka Banav Bodh Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabodh Bechardas Pandit
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1976
Total Pages372
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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