________________
विषिप्रपा । भवनिवेयपहाणा सद्धासंवेगसाहणे पउणा। गुरुएण पर्वघेणं धम्मकहा होइ कायदा ।। ३३ ॥ सद्धासंवेगपरं सूरी नाऊण तं तओ भई ।। चिइवंदणाइकरणे श्य 'वयणं भणइ निउणमई ॥ ३४ ॥ भो भो देवाणंपिय ! संपावियसयलजम्मसाफल ।। तुमए अन्नप्पमिई तिकालं जावजीवाए ॥ ३५॥ वंदेयवाइं चेहयाई एगग्गसुथिरचित्तेणं । खणमंमुराओं मणुयत्तणाओं इणमेव सारं ति ॥ ३६ ।। तत्थ तुमे पुवण्हे पाणं पि न चेव ताव पेयर्छ । नो जाव घेइयाई साहू विय वंदिया विहिणा ॥ ३७॥ मन्मण्हें पुणरवि वंदिऊण नियमेण कप्पए भोत्तुं ।। अवरण्हे पुणरवि वंदिऊण नियमेण सयणं ति ॥ ३८ ॥ एक्ममिग्गहषधं काउं तो वद्धमाणविजाए। अभिमंतिऊण गेण्हा सत्त गुरू गंधमुट्ठीओ ॥ ३९ ॥ तस्सोत्तमंगदेसे 'नित्थारगपारगो भविज'त्ति । उच्चारेमाणु चिय निक्खिवइ गुरू सुपणिहाणं ॥ ४०॥ एयाए विवाए पभावजोगेण जोस किर भयो। अहिगयकजाण लहुं नित्थारगपारगो होइ ॥ ४१ ॥ अह चउविहो वि संघो 'नित्थारगपारगो भविज तुमं धन्नो। सुलक्षणों जंपिरो त्ति से निक्खिवइ गंधे ॥ ४२ ॥ तत्तो जिणपडिमाए पूया देसाउ सुरहि गंधहूं । अमिलाणं सियदामं गिण्हिय विहिणा सहत्थेणं ॥४३॥ तस्सोमयखंघेसं आरोवितेण सुद्धचित्तेणं । निस्संदेहं गुरुणा वत्तवं एरिसं वयणं ॥ ४४ ॥ 'भो भो सुलद्धनियजम्म ! निचियअइगुरुअ-पुण्णपन्भार !। नारय-तिरियगईओ तुज् अवस्सं निरुद्धाओ॥ ४५ ॥ नो बंधगो य सुंदर ! तुममित्तो अयस-नीयगोत्ताणं । न य दुलहो तुह जम्मंतरे वि एसो नमोकारो॥ ४६ ॥ पंचनमोक्कारपभावओ य जम्मंतरे वि किर तुझ । जातीकुलरूवारोग्गसंपयाओ पहाणाओ॥४७॥ अन्नं च इमाउ चिय न हुंति मणुया कयावि जियलोए। दासा पेसा दुभगा नीया विगलिंदिया चेव ॥४८॥ किं बहुणा जे गोयम ! विहिणा एवं सुयं अहिजित्ता ।
सुयमणियविहाणेणं सुद्धे सीले अभिरमिज्जा ॥ ४९ ॥ 1 वने । 2 B °साफला।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org