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________________ मालारोपणविधि। से जह नो तेणं चिय भवेण निशाणमुत्तमं पत्ता। ताऽणुत्तरगेविज्वाइएसु सुइरं अभिरमेडं ॥५०॥ उत्तमकुलंमि उकिट्ठलट्ठसवंगसुंदरा पयडी। सयलकलापत्तट्ठा जणमणआणंदणा होउं ॥५१॥ देविंदोवमरिद्धी दयावरा विणयदाणसंपन्ना। निविनकामभोगा धम्म सयलं अणुढेउं ॥५२॥ सुहशाणानलनिवघाइकम्भिधणा महासत्ता । उपन्नविमलनाणा विहुयमला झत्ति सिझंति ॥५३॥ इय विमलफलं सुणिउं जिणस्स मह मा ण दे व सू रि स्स । वयणा उवहाणमिणं साहेह महानिसीहाओ॥ ५४॥ ॥उवहाणविही समत्तो ॥७॥ ६१६. तओ मालोववूहणं करेह । जहा सावनकजवजणनिहुरणुट्ठाणविहिविहाणेण । दुक्करउवहाणेणं विजा इव सिज्झए माला ॥१॥ परमपयपुरीपत्थियपवयणपाहेयपाणिपहियस्स। पत्थाणपढममंगलमाला पयडा परमपसवा ॥२॥ संतोसखग्गदारियमोहरिउत्तेण रुद्ध विसयस्स । आणंदपुरपवेसे वंदणमाला जियनिवस्स ॥३॥ अहवा दुजोह-मय-मोह-जोहविजयत्थमुज्जमपरस्स । जीवनोहस्सेसा रणमाला इव सहइ माला ॥४॥ समत्त-नाण-दसण-चरित्तगुणकलियभवजीवस्स। गुणरंजियाइ एसा सिद्धिकुमारीइ वरमाला ॥५॥ माला सग्गपवग्गमग्गगमणे सोवाणवीही समा, एसा भीमभवोयहिस्स तरणे निच्छिद्दपोओवमा। एसा कप्पियवत्थुकप्पणकए संकप्परुक्खोवमा, एसा दुग्गइदुग्गवारपिणा गाढग्गला देहिणं ॥ ६॥ जह पुडपायविसुद्धं रयणं ठाणं वरं लहइ तह य । तवतवणुतवियपावो परमपयं पावए पाणी ॥ ७॥ जह सूरसमारुहणे कमेण छिजंति' सयलछायाओ। तह सुहभावारुहणे जीवाणं कम्मपयडीओ॥ ८॥ दाणं सीलं तव-भावणाओ धम्मस्स साहणं भणिया। ताओ एय विहाणे बहु पडिपुन्नाओं नायवा ॥९॥ * 'शोभते' इति A टिप्पणी। 1 B छनति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003393
Book TitleVidhi Marg Prapa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages186
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size12 MB
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