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________________ विधिप्रपा । तओ खमासमणं दाउं सीसो भणइ-'तुम्हाणं पवेइयं, साहूणं पवेइयं, संदिसह काउस्सग्गं कारवेह' । गुरू भणइ-'करावेमो' । तओ खमासमणं दाउं–'पंचमंगलमहासुयक्खंधाइअणुन्नानिमित्त करेमि काउस्सगं' । उज्जोयं चिंतिय, तं चेव पढिय, खमासमणं दाउं भणइ-'इच्छाकारेणं तुब्मे अम्हं उवहाणविहिं सुणावेह' । तओ सूरी उद्धढिओ उवहाणविहिं वक्खाणेइ । । ६१५. सो य इमो पंच नमोकारे किल, दुवालस तवो उ होइ उवहाणं । अह य आयामाई, एग तह अट्ठमं अंते ॥१॥ एवं चिय निस्सेसं इरियावहियाइ होइ उवहाणं । सक्कथयमि अहममेगं बत्तीस आयामा ॥२॥ अरहंतचेइयथए उवहाणमिणं तु होइ कायचं । एगं चेव चउत्थं तिन्नि अ आयंबिलाणि तहा ॥३॥ एग चिय किर छटुं चउत्थमेगं च होह कायवं । पणवीसं आयामा चउवीसथयंमि उवहाणं ॥४॥ एगं चेव चउत्थं पंच य आयंबिलाणि नाणथए । चिइवंदणाइसुत्ते उवहाणमिणं विणिदिह ॥५॥ अवावारो विगहाविवजिओ रुद्दझाणपरिमुक्को। विस्सामं अकुणतो उवहाणं वहई' उवजुत्तो॥६॥ अह कहवि होज बालो वुड्डो वा सत्तिवजिओ तरुणो। सो उवहाणपमाणं पूरिजा आयसत्तीए ॥७॥ राईभोयणविरई दुविहं तिविहं चउविहं वावि । नवकारसहियमाई पचक्खाणं विहेऊण ॥८॥ एक्केण सुद्धअच्छंबिलेण इयरेहिं दोहिं उववासो। नवकारसहियएहिं पणयालीसाए उववासो॥९॥ पोरसिचउवीसाए होइ अवहेहिं दसहिं उववासो। विगईचाएहिं छहिं एगट्ठाणेहिं य चऊहिं ॥१०॥ जीएण निवियतियं पुरिमड्डा सोलसेव उववासो। एक्कासणगा चउरो अट्ठ य बिकासणा तह य ॥११॥ भयवं! पभूयकालो एव करेंतस्स पाणिणो होजा । तो कहवि होज मरणं नवकारविवजियस्सावि ॥१२॥ नवकारवजिओ सो निवाणमणुत्तरं कह लभिज्जा। तो पढम चिय गिण्हइ, उवहाणं होउ वा मा वा ॥१३॥ गोयम ! जं समयं चिय सुओवयारं करिन सो पाणी। तं समयं चिय जाणसु गहियतयटुं जिणाणाए ॥ १४ ॥ एवं कयउवहाणो भवंतरे सुलभबोहिओ होजा।। एयज्झवसाणो वि हु गोयम! आराहगो भणिओ ॥१५॥ 1B कुणइ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003393
Book TitleVidhi Marg Prapa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages186
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size12 MB
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