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शास्त्रसम्मत आचार-चर्या खरतरगच्छ की विशेषता रही है। जिनप्रभसूरि ने अपने गच्छ की इसी विशेषता को सम्पूर्ण एवं सर्वांग रूप से इस ग्रन्थ में समेट कर भविष्य के लिए प्रामाणिक विधि-विधान उपलब्ध कराने का महत्त्वपूर्ण कार्य सम्पादित किया है। यह ग्रन्थ उन्होंने अपनी प्रौढावस्था में रचा था अतः लगभग समस्त विधि-विधानों के सन्दर्भ व प्रकियाएं उनके द्वारा स्वानुभूत थीं, केवल संकलन मात्र नहीं।
पुस्तक का रचना वैशिष्ट्य इस बात से प्रकट होता है कि श्रावक जीवन से संबंधित, श्रमण जीवन से संबंधित तथा दोनों के संयुक्त क्रियाकलापों से संबंधित सभी विधि-विधान इसमें समेट लिये गये हैं। इसे विधि-विधान का सन्दर्भ कोश कहा जाये तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। श्वेताम्बर आम्नाय के लगभग सभी गच्छ अपने समस्त विधि-विधान मूलत: इस अद्वितीय पुस्तक के आधार पर करते रहे हैं। कालान्तर में अपनी-अपनी परम्परा की कतिपय विशिष्टताएँ बताने के लिए कुछ परिवर्तन कर इस विषय के पृथक् ग्रन्थ "तैयार किये गये, किन्तु आधार ग्रन्थ यही रहा।
इस ग्रन्थ का प्रथम संस्करण का प्रकाशन श्री जिनदत्तसूरि पुस्तकोद्धार फण्ड, सूरत के द्वारा ईस्वी सन १९४१ में हुआ था। यह संस्था गच्छ के प्रभावक आचार्य श्री जिनकृपाचन्द्रसूरिजी महाराज ने स्थापित की थी
और आचार्य श्री जयसागरसूरि, उपाध्याय सुखसागरजी, मुनि श्री मंगलसागरजी एवं प्रसिद्ध पुरातत्त्वविद् मुनि कान्तिसागरजी के प्रयासों से अनेकों ग्रन्थ प्रकाशित हुए थे जो आज दुर्लभ हैं। .
स, हस्तलिखित पाण्डुलिपियों के आधार पर इसका सम्पाढ: पद्मश्री पुरातत्त्वाचार्य मुनि जिनविजयजी ने किया था। उन्होंने इस ग्रन्थ की विस्तृत भूमिका लिखी है तथा श्री अगरचन्दजी नाहटा श्री भंवरलालजी नाहटा ने जिनप्रभसूरि के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर विस्तार से प्रकाश डाला है। इन विद्वानों ने जैन साहित्य को प्रकाश में लाने का जो महत्त्वपूर्ण काम किया है। उसके लिए यहाँ आभार प्रकट करना समीचीन होगा।
- जिनप्रभसूरि द्वारा रचित ग्रन्थों व स्तोत्रों की जो सूची नाहटा बन्धुओं ने इनकी जीवनी में दी है उसके अतिरिक्त भी इनकी रचनाओं का उल्लेख मिलता है। इस विषय में विस्तार से चर्चा मेरी पुस्तक शासन प्रभावक आचार्य जिनप्रभसूरि और उनका साहित्य में देखी जा सकती है। नाहटा बन्धुओं की सूची के अतिरिक्त रचनाओं की सूची निम्न प्रकार हैं :क्रमांक रचना नाम ।
क्रमांक रचना नाम १. गुणानुरागकुलक
कालचक्रकुलक ३. उपदेशकुलक
४. परमात्मद्वात्रिंशिका ५. प्रायश्चितविशुद्धि
व्यवस्था पत्र शेषसंग्रह टीका
भवियकुटुम्बचरियं गायत्री विवरण
- १०. ह्रींकारकल्प शक्रस्तवाम्नाय
१२. अलंकार कल्प विधि सारस्वतदीपक
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