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________________ श्रीजिनप्रभ सूरिका जिनप्रभ सूरिकी परम्पराके प्रशंसात्मक कुछ गीत और पद [इस शीर्षकके नीचे जो कुछ प्राचीन गीत, पद और गायादि दिये जाते हैं वे बीकानेरके भंडारकी एक प्राचीन प्रकीर्ण पोथीमें उपलब्ध हुए हैं। यह पोथी प्रायः इन्हीं जिनप्रभ सूरिकी शिष्यपरंपरामेंके किसी यतिकी हाथकी लिखी हुई प्रतीत होती है। इसमें जो 'गुर्वावलि गाथा कुलक' लिखा हुआ मिलता है उसमें जिनहित सूरि तकका नामनिर्देश है उसके बादके किसी आचार्यका नाम नहीं है । अतः यह जिनहित सूरिके समयमें - वि० सं० १४२५-५० के अरसेमें-लिखी गई होनी चाहिए। इस पोथीमें प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश और तत्कालीन देश्य भाषामें बनी हुई अनेक प्रकीर्ण रचनाओंका संग्रह है । इसी संग्रहमेंसे ये निम्नोद्धृत कृतियां, जो श्रीजिनप्रभ सूरिकी परंपराके गुरु और शिष्य रूप आचार्योंके गुणगानात्मक रूप हैंउपयोगी समझ कर यहां पर प्रकाशित की जाती हैं। इनमें जिनप्रभ सूरिके गुणवर्णनपरक जो गीत हैं वे उसी समयके बने हुए होनेसे भाषा और इतिहास दोनोंकी दृष्टिसे उल्लेखनीय हैं ।-जिनविजय ] [१] जिनेश्वरसूरिवधावणा गीत जलाउर नयरि वधावणउं । चल न चलु हलि सखे देखण जाहिं । गणधर गोतमसामि समोसरिउ ॥ १॥ वीरजिणभवणि देवलोकु अवतरियले । सुगुरु जिणसरसुरि मुनिरयणु ॥ आंचली ॥ चत्रुविधि रयली समोसरणु। चतुर्विध बइठले संघसमुदाओं । जिणसरसूरि सूध देसण करए ॥२॥ दिढ पहरि ग्या[रि]सि दिण सोधियले । सुभ लगनि सुभ मुहार]ति महतरि पहु थापियलि । चउदह मुणिवर दिख दिनले ॥ ३ ॥ तवसिरि षिवंसिरि संजमसिरि।। नाणि दरिसणि दुद्धरु संजमु भरु लइयले । जिणसरसुरि फुड वचन समुधरि ॥ ४ ॥ ॥ वधावणागीतं ॥ [२] श्रीजिनसिंहसूरि गीत हियडइ लाछि परी वसए चलणइ ए आविकदेवि । उठि गोरा उठि पातलए । उठि सहिय परगलओं विहाणउ, लइ चादणु करि वादणओं ॥ १ ॥ वादणओं करि रिसभ जिणेसर, जेणइ धरमु प्रकासियओं ॥ २ ॥ वंदणडउ करि सांतिजिणेसर, जिणि सरणागत राखियओं ॥ ३ ॥ वादणडउ मुणि सुव्रतसामिय, जीणइ मीतु प्रतिबोधियओं ॥ ४ ॥ वादणडउ करि नेमिजिणेसर, जेणइ जीव रखावियए ॥ ५॥ वादणडउ. करि पासजिणेसर, जेणइ कमठु हरावियों ॥ ६॥ वांदणउ करि वीरजिणेसर, जेणइ मेरु कंपावियओं ॥ ७ ॥ वांदणडउ गुरु वडउ सोहइ, जिणसिंघसूरि चारिति नीमलओं ॥ ८॥ ॥ गीतपदानि ॥ [३] श्रीजिनप्रभसूरि गीतउदयले खरतरगच्छगयणि अभिनवउ सहसकरो। सिरि जिणप्रभसूरि गणहरओ जंगमकलपतरो॥१॥ वंदहु भविक जना जिणसासणवणनववसंतो। छतीस गुण संजूतो वाइयमयगलदलणसीहो ॥ आंचली ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003393
Book TitleVidhi Marg Prapa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages186
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size12 MB
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