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श्रीजिनप्रभ सूरिका
जानेकी आज्ञा दी । तब वृक्ष भी सम्राट्को नमस्कार करके स्वस्थान चला गया। इस अनोखे चमत्कार से सूरिजी के प्रति सम्राट्की श्रद्धा अत्यधिक दृढ हो गई ।
बादशाह महमद तुगुलक क्रमशः प्रयाण करते हुए मारवाड़ पहुंचा। वहांके लोग सम्राट्के दर्शनार्थ आये । उन्हें उत्तम वस्त्राभरणोंसे रहित देख कर सम्राट्ने सूरिजीसे कहा-' - 'ये लोग लूटे हुएसे क्यों मालूम होते हैं ?' सूरिजीने कहा- 'राजन् ! यह मरुस्थली है; जलाभावके कारण धान्यादिकी उपज अत्यल्प होती है, अतएव निर्धनतावश इनकी ऐसी स्थिति है ।' सम्राट्ने करुणार्द्र होकर प्रत्येक मनुष्यको पाँच पाँच दिव्य वस्त्र और प्रत्येक स्त्रीको दो दो स्वर्णमुद्राएं एवं साड़ी प्रदान कीं ।
महावीर प्रतिमाका बोलना
कन्यानयनकी श्री महावीर प्रतिमाको सूरिजीने सम्राट्से प्राप्त की थी, जिसका उल्लेख ऊपर आ ही चुका है। प्राकृत प्रबन्धमें लिखा है कि - जिस समय सम्राट्ने उस प्रतिमाका दर्शन किया और सूरिजीने प्रतिमाको जैन संघके सुपुर्द करनेका उपदेश दिया, तब सम्राट्ने कहा - 'यदि यह प्रतिमा मुंहसे बोले तो मैं आपको दे सकता हूं ।' इस पर सूरिजीने कहा - 'प्रतिमाकी विधिवत् पूजा करने से वह अवश्य बोलेगी । सम्राट्ने कौतुकसे उनके कथनानुसार पूजन किया और दोनों हाथ जोड़ कर विनीत भावसे प्रतिमाको बोलनेके लिए प्रार्थना की । तत्काल ही देवप्रभावसे अपना दाहिना हाथ लम्बा करके वह इस प्रकार बोली
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विजयतां जिनशासनमुज्वलं विजयतां भूभुजाधिपवल्लभा । विजयतां भुवि साहि महम्मदो विजयतां गुरुसूरिजिनप्रभः ।
अपने पूछे हुए प्रश्नोंका प्रभुप्रतिमासे सन्तोषजनक उत्तर पा कर सम्राट्के चित्तमें अत्यन्त चमस्कृति उत्पन्न हुई और उस प्रतिमाकी पूजाके निमित्त खरह और मार्तंड नामक दो ग्राम दिये और मन्दिर बनवा दिया ।
सम्राट्की शत्रुंजय यात्रा और रायणकी दूधवर्षा -
एक कार सुलतानने गुरुजीसे पूछा - "जिस प्रकार यह कान्हड़ महावीरका चमत्कारी तीर्थ है, क्या वैसा ही और कोई तीर्थ है ?" सूरिजीने तीर्याधिराज शत्रुंजयका नाम बतलाया । तब संघके साथ सम्राट् सूरिजीको लेकर शत्रुंजय गया। रायण रुखकी यात्रा करते समय सूरिजीने कहा- 'यदि इस रायणको मोतियोंसे बधाया जाय तो इसमेंसे दूधकी वर्षा होती है।' सम्राट्ने ऐसा ही किया, जिससे रायण रुंखसे दूध झरने लगा । इससे चमत्कृत हो कर सम्राट्ने वहां पर ऐसा लेख लिखवाया कि इस तीर्थकी जो अत्रज्ञा करेगा उसे सम्राट्की अवज्ञाका महान् दण्ड मिलेगा। शत्रुंजयकी तलहट्टीमें सर्व दर्शनोंके मान्य देवताओंकी मूर्तियां एकत्र कर मध्य भागमें जिनप्रतिमाको रखा और स्वयं सशस्त्र मुसाहिबोंके बीच में बैठ कर लोगोंसे पूछा - 'बड़ा कौन है ?' लोग बोले- 'आप ही बड़े हैं !' तो सुलतानने कहा जिस प्रकार हथियार वाले सब सेवक और मैं उनका मालिक हूं वैसे ही अस्त्र शस्त्र धारण करने वाले सब देवता सेवक हैं और जैन तीर्थङ्कर सब देवोंमें बड़े हैं ।
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गिरनारकी अच्छे प्रतिमा
वहांसे सूरिजी एवं संघ के साथ सम्राट्ने गिरनार पर्वतकी यात्रा की। वहांके श्रीनेमिनाथ प्रभुके बिम्बको अच्छे और अब सुन कर परीक्षाके निमित्त उस पर कई प्रहार करवाये, पर प्रहारोंसे प्रभु प्रतिमा खण्डित
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