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संक्षिप्त जीवन-चरित्र । कहा-'उलटा चोर कोतवालको दण्डे !' वाली उक्ति चरितार्थ हो रही है। मुदिका तो इसके मस्तक पर पडी है और यह हमारे पास बतलाता है । जब सम्राट्ने उसकी तलाशी ली तो वह अपनी करणीका फल पा कर म्लानमुख हो गया -"खाड खणे जो और को ता को कूप तैयार" । कलंदर मुल्ला मानमर्दन
इसी प्रकार फिर कभी राजसभामें खुरासानसे एक कलन्दर मुल्ला आया। उसने अपना प्रमाव जमाने और सूरिजीका प्रभाव घटानेके लिए अपनी टोपीको आकाशमें फैंक कर अधर रखी और गर्वपूर्वक सम्राट से कहने लगा-'क्या कोई आपकी सभामें ऐसा है जो इस टोपीको नीचे उतार सकता है ?' सम्राट्ने सूरिजीकी ओर देखा । उन्होंने तत्काल रजोहरण फैंक कर उसके द्वारा टोपीको ताडित करते हुए फकीरके मस्तक पर गिरा दी । इस कौशलसे हताश होकर कलन्दरने एक पनिहारीके मस्तक पर रहे हुए घडेको अधर स्तम्भित कर दिया । सूरिजीने कहा- 'घडेको स्तंभित करनेमें क्या है, बिना घडे पानीको स्तंभित करे वही श्रेष्ठ कला है'। सम्राट्ने मुल्लासे वैसा करनेको कहा परन्तु वह न कर सका । तब सूरिजीने तत्काल घडेको कंकरसे फोड कर पानीको अधर स्तंभित दिखला दिया। अद्भुत भविष्य-वाणी___एक समय सम्राट्ने शाही सभामें बैठे हुए समस्त पण्डितोंसे पूछा-'कहिये ! आज मैं किस मार्गसे राजवाटिकामें जाऊंगा?' सभी पण्डितोंने अपनी अपनी बुद्धिके अनुसार लिख कर सम्राट्को दे दिया । सम्राट्ने सूरिजीसे कहा तो उन्होंने भी अपना मन्तव्य लिख दिया । सब चिट्ठीयोंको अपने दुप्पट्टेमें बांध कर सम्राट्ने विचार किया, कि आज किसी ऐसे मार्गसे जाना चाहिए जिससे ये सब असत्यवादी सिद्ध हो जावें । विचारानुसार वह किलेके बुर्जको तुडवा कर नवीन मार्गसे राजवाटिकामें पहुंचा और एक वट वृक्षकी छायामें बैठ कर सब पण्डितों और सूरिजीको बुलाया । सबके लेख पढे गये और वे असत्य प्रमाणित हुए। अन्तमें सूरिजीका लेख पढा गया । उसमें लिखा था- 'किलेके बुर्जको तोड कर राजवाटिकामें जा कर सुलतान वट वृक्षके नीचे विश्राम करेंगे। इस अद्भुत निमित्तको श्रवण कर सभी विद्वान और विशेषतः सम्राट अत्यन्त विस्मित हुए और सम्राट्ने स्पष्ट रूपसे सबके समक्ष सूरिजीकी इन शब्दोंमें स्तुति की कि- 'सचमुच यह बात मनुष्यकी कल्पनासे भी अगम्य है । ये गुरु मनुष्य रूपमें साक्षात् परमेश्वर हैं। इसी प्रकार अन्यदा सम्राटके यह पूछने पर कि- 'मैं आज क्या खाऊंगा ?' सूरिजीने निमित्त बलसे एक पुर्जेमें अपना मन्तव्य लिख दिया और भोजनानन्तर खोलनेको कहा । सुलतानने "खोल" खाया और जब सूरिजीका लिखा हुआ पुर्जा देखा गया तो उसमें भी वही लिखा पाया । वट वृक्षको साथ चलाना
एक वार सम्राट्ने देशान्तर जानेके लिये प्रस्थान कर एक शीतल छायावाले वृक्षके नीचे विश्राम किया । सम्राट्ने आराम पा कर उस वृक्षकी बहुत प्रशंसा की और कहा कि- 'यदि यह वृक्ष अपने साथ रहे तो क्या ही अच्छा हो !' सूरिजीने अपने लोकोत्तर विद्या-प्रभावसे वृक्षको भी सम्राट्का सहगामी बना दिया। पांच कोस तक वृक्ष साथ चला; फिर सूरिजीने सम्राटके कहनेसे उस वृक्षको वापिस खस्थान
१ सम्राटके समक्ष मुल्लाकी टोपीको रजोहरण द्वारा आकाशसे गिरानेका उल्लेख युगप्रधान श्रीजिनचंद्रसूरिजीके संबन्धमें भी आता है। इसी प्रकार अमावास्याके दिन पूर्णचंद्रका उदय करनेका प्रसङ्ग भी यु० जिनचन्द्रसूरि और सम्राट अकबरके परित्रोंमें आता है। हमारे विचारसे ये दोनों बातें श्रीजिनप्रभसूरिजीके सम्बन्धकी होंगी।
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