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________________ श्रीजिनप्रभ सूरिका हस्तिनापुर तीर्थकल्पमें, संघ सहित यात्रा करनेका सूरिजीने स्वयं उल्लेख किया है। तीर्थयात्रा से लौट कर सूरिजीने वैशाख खुदि १० के दिन श्रीकन्यानयनके महावीर बिम्बको सम्राट्के बनवाये हुए जैन मन्दिर में महोत्सव पूर्वक स्थापित किया । १२ इधर सम्राट् भी दिग्विजय करके दिल्ली लौटा। जैनमन्दिर और उपाश्रयोंमें उत्सव होने लगे । सम्राट् एवं सूरिजीका सम्बन्ध उत्तरोत्तर घनिष्ठता प्राप्त करने लगा । अतः सूरिजी और सम्राट् दोनोंके द्वारा जिनशासन की बड़ी प्रभावना होने लगी । सूरिजीके प्रभावसे दिगम्बर श्वेताम्बर समस्त जैन संघ व तीर्थों का उपद्रव शाही फरमानों द्वारा सर्वथा दूर हो गया । ग्रन्थान्तरोंके चमत्कारिक उल्लेख सुलतान प्रतिबोधका उपर्युक्त वृत्तान्त, विविधतीर्थकल्प प्रन्थान्तर्गत 'श्रीकन्यानयन- महावीर प्रतिमाकल्प' और रुद्रपल्लीय गच्छके श्रीसोमतिलक सूरि कृत 'कन्यानयन - श्रीमहावीर - तीर्थकल्प परिशेष' से लिखा गया है जो कि प्रथम स्वयं सूरि महाराजकी और दूसरी समकालीन रचना है । अब प्राकृत जिनप्रभसूरिप्रबन्धादि ग्रन्थान्तरोंसे सूरिजी एवं सम्राट् सम्बन्धी विशेष बातें संक्षेपमें दी जाती हैं । पद्मावती सांनिध्य - पद्मावती देवीकी सूचनानुसार सूरिजी दिल्लीके शाहपुरामें आकर ठहरे। एक वार शौचभूमि जाते समय अनायने लेष्टु ( ढेला - पत्थर ) आदि द्वारा उन्हें अपमानित किया । पद्मावती देवीने उन अनायको उचित शिक्षा दी । इससे उन्होंने भाग कर सुलतान महमदशाहसे सारा वृतान्त कहा । उसने चमत्कृत हो कर सूरिजी को अपने यहां बुलाया। सूरिजीके कुम्भकासनादि द्वारा सम्राट्का चित्त अत्यन्त प्रभावित हुआ । व्यन्तरोपद्रव निवारण एक वार सम्राट्ने सूरिजीसे कहा - 'मेरी प्रिया बालादेको किसी व्यन्तरकी बाधा है जिससे वह वस्त्रग्रहणादि शरीर शुश्रूषा नहीं करती। आपका प्रभाव असाधारण है अतः कृपया किसी प्रकार से इस व्यन्तरोपद्रवका निवारण करें। सूरिजीने कहा, - 'अच्छा ! उसके पास जाकर कहो कि जिनप्रभ सूरि आते हैं ।' सम्राट्ने वैसा ही किया । सूरिजीके आगमनकी बात सुन कर बाला देने सहसा उठ कर दासीसे वस्त्र मंगा कर पहन लिये । सूरि महाराजके नाममें ही कैसा अद्भुत प्रभाव है इसका प्रत्यक्ष फल देख कर सम्राट् अत्यन्त प्रसन्न हुआ, और सूरिजीको महलमें पधारनेकी वीनति की । सूरिजीने आते ही बालादेके देह में प्रविष्ट व्यन्तरको कहा - 'दुष्ट ! तूं यहां कहांसे आया, चला जा'। उसने जब जानेकी आनाकानी की तो गुरुदेवने मेघनाद क्षेत्रपालके द्वारा उसे भगा दिया । रानी स्वस्थ हो गई और सूरिजीके प्रति अत्यन्त भक्तिभाव रखने लगी । इर्ष्यालु राघव चेतनको शिक्षा - एक वार सम्राट्की सेवामें काशी से चतुर्दशविद्यानिपुण मंत्र-तंत्रज्ञ राघवचेतन नामका ब्राह्मण आया। उस अपनी चातुरीसे सम्राट्को रञ्जित कर लिया । सम्राट् पर जैनाचार्य श्रीजिनप्रभ सूरिजीका प्रभाव उसे बहुत अखरता था। अतः उन्हें दोषी ठहरा कर, उनका सम्राट् पर प्रभाव कम करनेके लिये सम्राट्की मुद्रिका अपहरण कर सूरिजी रजोहरणमें प्रच्छन्न रूपसे डाल दी । पद्मावती देवीसे वृतान्त ज्ञात कर सूरिजीने धीरेसे उस मुद्रिकाको राघव चेतनकी पगडी पर लटका दी । सम्राट् मुद्रिका न पा कर इधर उधर देखने लगा राघव चेतनने कहा - 'आपकी मुद्रिका सुरिजीके पास है ।' सम्राट्ने जब सूरिजीकी ओर देखा तो उन्होंने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003393
Book TitleVidhi Marg Prapa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages186
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size12 MB
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