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________________ ११ संक्षिप्त जीवन-चरित्र । लाखों रुपयोंके दण्डसे मुक्त कराया; एवं अन्य लोगोंको मी करुणावान् पूज्यश्रीने कैदसे छुड़ाया। जो लोग अवकृपा प्राप्त हो गए थे वे मी सूरिजीके प्रभावसे पुनः प्रतिष्ठाप्राप्त हुए । सूरिजी निरन्तर राजसभामें जाते थे। उन्होंने अनेक वादियों पर विजय प्राप्त कर जिन शासनकी शोभा बढाई थी । सं० १३८९ के ज्येष्ठ सुदि ५ को 'वीरगणधर' कल्प और मिती भादवा सुदि १० को दिल्लीमें ही विविधतीर्थकल्प नामक अद्वितीय ग्रन्थरनकी पूर्णाहुती की। फाल्गुन मासमें, दौलताबादसे सम्राट्की जननी मगदूमई जहांके आने पर, चतुरङ्ग सेनाके साथ बादशाह उसकी अभ्यर्थनामें सन्मुख गया। उस समय सूरि महाराज भी साथ थे । वडथूण स्थानमें मातासे मिल कर सम्राट्ने सबको प्रचुर दान दिया । प्रधानादि अधिकारियोंको वस्त्रादि देकर सत्कृत दिया। वहांसे दिल्ली आकर सूरिजीको वस्त्रादि देकर सन्मानित किया । दीक्षा और बिम्बप्रतिष्ठादि उत्सव चैत सुदि १२ के दिन, राजयोगमें, सम्राट्की अनुमतिसे उसके दिये हुए साईबाणकी छायामें नन्दी स्थापना की । सूरिजीने वहां ५ शिष्योंको दीक्षित किया । मालारोपण, सम्यक्त्व ग्रहण आदि धर्मकृत्य हुए। स्थिरदेवके पुत्र ठ० मदनने इस प्रसङ्ग पर बहुतसा द्रव्य व्यय किया । मिती आषाढ सुदि १० को नवीन बनवाये हुए १३ अर्हत बिंबोंकी सूरिजीने महोत्सव पूर्वक प्रतिष्ठा की । बिम्बनिर्माता एवं सा० पहराजके पुत्र अजयदेवने प्रतिष्ठा महोत्सवमें पुष्कळ द्रव्य व्यय किया। सम्राट् समर्पित भद्दारक-सरायमें प्रवेश सुलतान सराय राजसभासे काफी दूर थी; अतः सूरिजीको हमेशा आनेमें कष्ट होता है ऐसा विचार कर सम्राट्ने अपने महलके निकटवर्ती सुन्दर भवनों वाली नवीन सराय समर्पण की । श्रावक संघको वहां पर रहनेकी आज्ञा देकर बादशाहने उसका नाम 'भट्टारक सराय' प्रसिद्ध किया। वहां पर वीरप्रभुका मन्दिर व पौषधशाला बनवाई । सं० १३८९ मिती आषाढ कृष्णा ७ को, उत्सव पूर्वक सूरि महाराजने पौषधशालामें प्रवेश किया। इस प्रसङ्ग पर विद्वानों एवं दीन अनाथोंको यथेष्ट दान दिया गया । मथुरा तीर्थका उद्धार___मार्गशिर महिनेमें सम्राट्ने पूर्व देशकी ओर विजय प्राप्त करनेके हेतु ससैन्य प्रस्थान किया । उस समय उन्होंने सूरिजीको भी वीनति करके अपने साथमें लिये । स्थान स्थान पर बन्दीमोचनादि द्वारा शासन-प्रभावना करते हुए सूरि महाराजने मथुरा तीर्थका उद्धार कराया । हस्तिनापुरकी यात्रा और प्रतिष्ठा __शाही सेनाके साथ पैदल विहार करते हुए सूरिजीको कष्ट होता है, यह विचार कर सम्राट्ने खोजे जहां मल्लिकके साथ उन्हें आगरेसे दिल्ली लौटा दिया। हस्तिनापुरकी यात्राका फरमान लेकर आचार्य श्री दिल्ली पहुंचे । चतुर्विध संघ हस्तिनापुरकी यात्राके निमित्त एकत्र हुआ । शुभ मुहूर्तमें बोहित्य (चाहड पुत्र ) को संघपतिका तिलक कर वहांसे प्रस्थान किया । संघपति बोहित्थने स्थान स्थान पर महोत्सव किये। तीर्थभूमि में पहुंच कर तीर्थको बधाया। नवनिर्मित शान्तिनाथ, कुंथुनाथ, अरनाथ आदि तीर्थंकरोंके बिम्बोंकी सूरिजीसे प्रतिष्ठा करवाई । अंबिकादेवीकी प्रतिमा स्थापित की । संघपतिने संघवात्सल्यादि किये । संघने वन, भोजन आदि द्वारा याचकोंको सन्तुष्ट किया। संवत् १३८९ वैशाख मुदि ६ के दिन रचित, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003393
Book TitleVidhi Marg Prapa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages186
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size12 MB
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