SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 34
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री जिनप्रभ सूरिका सम्राट्का स्मरण और आमंत्रण एक बार दिल्ली में बादशाह महम्मद तुगुलक अपनी सभामें विद्वानोंके साथ विद्वगोष्ठी करता था । उसको किसी शास्त्रीय विचार में सन्देह उत्पन्न हो जाने पर उपस्थित पण्डितों द्वारा समाधान न होनेसे एकाएक श्रीजिनप्रभ सूरिजीकी स्मृति हो आई । उसने कहा- 'यदि इस समय राजसभामें वे सूरि विथमान होते तो अवश्य हमारे संशय का निराकरण हो जाता। सचमुच उनकी विद्वत्ता अगाध है।' इस प्रकार सम्राट्के मुख से सूरिजी की प्रशंसा सुन कर दौलताबाद से आए हुए ताजुलमल्लिकने शिर झुका कर निवेदन किया - 'स्वामिन् ! वे महात्मा अभी दौलताबाद में हैं, परंतु वहांका जलवायु अनुकूल न होनेसे वे बहुत कृश हो गये हैं !' यह सुन कर प्रसन्नता पूर्वक सूरिजीके गुणोंका स्मरण करते हुए उस मल्लिकको आज्ञा दी कि तुम शीघ्र दुवीरखाने जाकर फरमान लिखा कर सामग्री सहित भेजो, जिससे वे आचार्य देवगिरिसे यहां शीघ्र पहुंच सकें । सम्राट्की आज्ञासे मल्लिकने वैसा ही किया । यथा समय शाही फरमान दौलताबादके दीवान के पास पहुंचा। सूबेदार कुतुहलखानने सूरिजीको दिल्ली पधारनेके लिये रूविनय प्रार्थना करते हुए शाही फरमान बतलाया । सूरि महाराजने सप्ताह भर में ( १० दिन बाद ) तैयार होकर ज्येष्ठ सुदि १२ को राजयोग में संघ के साथ वहांसे प्रास्थान किया । अल्लापुरमें उपद्रव निवारण - स्थान स्थानमें धर्म-प्रभावना करते हुए सूरि महाराज अल्लात्रपुर दुर्ग पधारे। असहिष्णु म्लेच्छोंको एक जैनाचार्यकी इस प्रकारकी महिमा सह्य नहीं हुई । उन लोगोंने सथवाडेके लोगोंकी बहुतसी वस्तुएं छीन लीं एवं इसी प्रकार कीतने ही उपद्रव करने प्रारम्भ कर दिये । जब दिल्लीमें विराजमान श्रीजिनदेव सूरजीको यह वृत्तान्त ज्ञात हुआ तो उन्होंने तत्काल सम्राट्को सारा हाल कह सुनाया । सम्राट्ने बहुमान पूर्वक फरमान भेज कर वहांके मल्लिक द्वारा लोगोंकी सारी वस्तुएं वापिस दिला दीं। इससे सूरिजीका अद्भुत प्रभाव पड़ा, उन्होंने १॥ मास रह कर वहांसे प्रस्थान कर दिया । क्रमशः विचरते हुए जब आप सिरोह पहुंचे तो सम्राट्ने उन्हें देवदूष्यकी भाँति सुकोमल १० वस्त्र भेज कर सत्कृत किया । वहांसे विहार करके . दिल्ली पहुंचे । दिल्ली में सम्राट् से पुनर्मिलन - जैनसंघ और सम्राट् उनके दर्शनोंके लिये चिर काल से उत्कण्ठित था ही। पूज्य श्रीके शुभागमनसे उनका हृदय अत्यन्त प्रफुल्लित हो गया । मिती भादवा सुदि २ के दिन मुनिमण्डल एवं श्रावकसंघके साथ युगप्रधान गुरुजी राजसभामें पधारे। सम्राट्ने मृदु वचनोंसे वन्दन पूर्वक कुशल प्रश्न पूछा और अत्यन्त स्नेहवश सूरजीके हाथको चुम्बन कर अपने हृदय पर रखा । सूरि महाराजने तत्काल ही नवीन निर्मित पद्यों द्वारा आशीर्वाद दिया । जिसे श्रवण कर सम्राट्का चित्त अत्यन्त चमत्कृत हुआ । सूरिजी के साथ वार्तालाप होनेके अनन्तर विशाल महोत्सव पूर्वक अपने हिन्दु राजाओं और प्रधान पुरुषोंके साथ वार्जित्रादि बजते हुए सन्मान पूर्वक सम्राट्ने सुलतान सराय की पौषधशाला में उन्हें पहुंचा दिया । उनका प्रवेशोत्सव अपूर्व आनंददायक और दर्शनीय था । पर्युषण में धर्म-प्रभावना मिती भादवा शुक्ला ४ के दिन संघने महोत्सव पूर्वक पर्युषणाकल्प सूरिजी से भक्ति पूर्वक श्रवण किया । सूरिजीके आगमन और प्रभावनाके पत्र पा कर देशान्तरीय संघ हर्षित हुआ। सूरिजीने राजबन्दी श्रावकों को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003393
Book TitleVidhi Marg Prapa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages186
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy