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________________ श्रीजिनप्रभ सूरिका श्रीजिनचन्द्र सूरिजीने ग्वण्डासराय (दिल्ली) चातुर्मास करके मेड़ताके राणा मालदेवकी वीनतिसे विहार कर मार्ग में धामइना, रोहद आदि नाना स्थानोंसे हो कर, कन्यानयन पधार कर महावीर प्रभुको नमस्कार किया। संवत् १३८० में सुलतान गयासुद्दीनके फरमान ले कर दिल्लीसे शजयका संघ निकला । वह सर्व-प्रथम कन्यानयन आया, वहां वीर प्रभुकी यात्रा कर फिर आशिका, नरभट, खाटू, नवहा, झुंझणू आदि स्थानों में होते हुए, फलौघी पार्श्वनाथजीकी यात्रा कर, शत्रुजय गया । उपर्युक्त इन सारे अवतरणोंसे कन्यानयनका, आशिकाके निकट वागड़ देशमें होना सिद्ध होता है। श्रीजिनप्रभ सूरिजीने कन्यानयनके पास 'कर्यवासस्थल' का जो कि मंडलेश्वर कैमासके नामसे प्रसिद्ध था, उल्लेख किया है। मंडलेश्वर कैमासका संबन्ध मी कानानूरसे न हो कर हांसीके आसपासके प्रदेशसे ही हो सकता है। गुर्वावलीके अवतरणोंसे नागौरसे दिल्लीके रास्तेमें नरभट और आशिकाके बीच में कन्यानयन होना प्रामाणित है । अनुसन्धान करने पर इन स्थानोंका इस प्रकार पता लगा है - नरभट-पिलानी से ३ मील । कन्यानयन-वर्तमान कन्नाणा दादरी से ४ मील जिंद रिसायतमें है । आशिका-सुप्रसिद्ध हांसी । पं० भगवानदासजी जैनने ठ० फेरु विरचित 'वस्तुसार' प्रन्थकी प्रस्तावनामें कन्यानयनको वर्तमान करनाल बतलाया है, परन्तु हमें वह ठीक नहीं प्रतीत होता । गुर्वावलीके उल्लेखानुसार करनाल कन्यानयन नहीं हो सकता। ___ इसमें अब एक यह आपत्ति रह जाती है कि श्रीजिनप्रभ सूरिजीने स्वयं 'कन्याननीय - महावीरकल्प' में कन्यानयनको चोल देशमें लिखा है । हमारे विचारसे यह चोल देश, जिस स्थानको हम बतला रहे हैं, पूर्वकालमें उसे भी चोल देश कहते हों। इस विषयमें विशेष प्रमाण न मिलनेसे विशेष रूपसे नहीं कह सकते; पर गुर्वावलीमें महावीर प्रतिमाकी प्रतिष्ठाके संबन्धमें जब यह उल्लेख है कि-सं० १२३३ के ज्येष्ठ सुदि ३ को, आशिकामें धार्मिक उत्सव होनेके पश्चात् , आषाढमें ही कन्यानयनमें महावीर बिंबकी प्रतिष्ठा श्रीजिनपति सूरिजी द्वारा हुई; और वहांसे फिर व्याघ्रपुर आ कर पार्श्वदेवको दीक्षित किया । श्रीजिनप्रभ सूरिजीने भी प्रतिमाको 'सा० मानदेव कारित, सं० १२३३ आषाढ सुदि १० को प्रतिष्ठित, मानदेवको श्रीजिनपति सूरिजीका चाचा होना, और प्रतिष्ठा भी श्रीजिनपति सूरिजी द्वारा होना' लिखा है। उसी प्रकार ये सारी बातें प्राचीन गुर्वावलीसे भी सिद्ध और समर्थित हैं। पिछले उल्लेखोंमें मी, जो कि कन्यानयनके महावीर भगवानकी यात्राके प्रसङ्गमें हैं, कन्यानयनको वागड़ देशमें आशिकाके पास ही बतलाया है। इन सब बातों पर विचार करते हुए हमारी तो निश्चित राय है कि कन्यानयन कानानूर न हो कर वर्तमान कनाणा ही है। जिस प्रकार वागड़ देश ४ हैं, इसी प्रकार चोल देश भी दो हो सकते हैं। विक्रमपुर स्थळ निर्णय सा० मानदेव के निवास स्थान विक्रमपुरको पं० लालचंद भगवानदासने दक्षिणके कानानूर के पासका बतलाया है; पर यह विक्रमपुर तो निश्चिततया जेसलमेरके निकटवर्ती वर्तमान वीक्रमपुर है । श्रीजिनपति सूरिजीके रास में 'अत्यि मरुमंडले नयर विक्कमपुरे' शब्दोंसे विक्रमपुरको मरुस्थलमें सूचित किया है। संभव है सा० मानदेव व्यापारादिके प्रसङ्गसे वागड़ देशके कन्यानयनमें रहते हों और वहीं श्रीजिनपति सूरिजीके जाने पर महावीर भगवानकी प्रतिष्ठा कराई हो । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003393
Book TitleVidhi Marg Prapa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages186
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size12 MB
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