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संक्षिप्त जीवन-चरित्र । करते हुए पण्डितोंसे पूछा कि-'इस समय सर्वोत्तम विद्वान कौन है ?' इसके उत्तरमें ज्योतिषी धाराधरने श्रीजिनप्रभ सूरिजीके गुणोंकी प्रशंसा करते हुए उन्हें सर्वश्रेष्ठ विद्वान् बतलाया। बादशाह एक विद्यान्यसनी सम्राट् था, वह विद्वानोंका खूब आदर करता था। उसकी सभा सदैव बहुतसे चुने हुए पण्डित विद्वद्गोष्ठी किया करते थे, जिसमें सम्राट् खयं रस लिया करता था । अतः पं० धाराधरसे श्रीजिनप्रभ सूरिजीका नाम श्रवण कर उन्हींके द्वारा आचार्य श्रीको अपनी राजसभामें बहुमान पूर्वक बुलाया । बादशाहसे मिलन व सत्कार
सम्राट्का आमन्त्रण पा कर मिती पोषशुक्ला २ को संध्याके समय सूरिजी उससे मिले । सम्राट्ने अपने अत्यन्त निकट सूरिजीको बैठा कर भक्तिके साथ उनसे कुशलप्रश्न पूछा । सूरिजीने प्रत्युत्तर देते हुए नवीन काव्य रच कर आशीर्वाद दिया जिसे सुन कर सम्राट अत्यन्त प्रमुदित हुआ। लगभग अर्धरात्रि तक सूरिजीके साथ सम्राट्की एकान्त गोष्ठी होती रही। रात्रि अधिक हो जानेके कारण सूरिजी वहीं रहे । प्रातःकाल पुनः सम्राट्ने सूरिजीको अपने पास बुलाया और सन्तुष्ट हो कर १००० गाय, द्रव्यसमूह, श्रेष्ठ उद्यान, १०० वस्त्र, १०० कम्बल, एवं अगर, चंदन, कर्पूरादि सुगन्धित द्रव्य उन्हें अर्पण करने लगा। परन्तु-'जैन साधुओंको यह सब अकल्पनीय हैं' - इत्यादि समझाते हुए सूरिजीने उन सबका लेना अस्वीकार किया। किन्तु सम्राट्को अप्रीति न हो इसलिये राजाभियोग वश उनमेंसे केवल कम्बल वस्त्रादि अल्प वस्तुयें कुछ ग्रहण की।
सम्राट्ने विविध देशान्तरोंसे आये हुए पण्डितोंके साथ सूरिजीकी वाद-गोष्ठी करवा कर दो श्रेष्ठ हाथी मंगवाये । उनमेंसे एक पर श्रीजिनप्रभ सूरिजीको और दूसरे पर उनके शिष्य श्रीजिनदेव सूरिजीको चढा' कर, अनेक प्रकारके शाही वाजित्रोंके समारोह पूर्वक, पौषध शालामें पहुंचाया । उस समय भट्टादि लोग विरुदावली गा रहे थे, राज्यधिकारी प्रधान-वर्ग भी, चारों वर्णकी प्रजाके सहित, उनके साथ थे । संघमें अपार आनंद छा रहा था; आचार्य महाराजकी जयध्वनिसे आकाश गूंज रहा था । श्रावकोंने इस सुअवसर पर आडंबरके साथ प्रवेश-महोत्सव किया और याचकोंको प्रचुर दान दे कर सन्तुष्ट किया । संघरक्षा और तीर्थरक्षाके फरमान
सम्राट्का सूरिजीसे परिचय दिनों-दिन बढने लगा जिससे उनके विद्वत्तादि गुणोंकी उसके चित्त पर जबरदस्त छाप पड़ी। उस समय जैनों पर आये दिन नाना प्रकारके उपद्रव हुआ करते थे।
बाहर हो जाता था । वह चाहता था कि लोग उसके सुधारोंका शीघ्र स्वीकार कर लें। जब उसकी आज्ञाके पालनमें आनाकानी होती अथवा विलम्ब होता था तो वह निर्दय हो कर कठोर-से-कठोर दण्ड देता था। विद्वान् होनेके साथ ही साथ महम्मद एक वीर सिपाही और कुशल सेनापति भी था। सुदूर प्रान्तोंमें कई वार उसने युद्धमें महत्त्वपूर्ण विजय प्राप्त की थी। ...... वह कठोर हृदय होते हुए भी उदार था। अपने धर्मका पाबन्द होते हुए भी कहरता और पक्षपातसे दूर रहता था । और अभिमानी होते हुए भी उसका विनय प्रशंसनीय था। .........
महम्मद खेच्छाचारी था-परंतु उसकी चित्तवृत्ति उदार थी। शासन-प्रबन्धके संबन्धमें वह धर्माधिकारियों को जरा मी हस्तक्षेप नहीं करने देता था और हिन्दुओं के प्रति उसका व्यवहार अन्य सुलतानोंकी अपेक्षा अधिक निष्पक्ष
और सौजन्यपूर्ण था। वह बडा न्यायप्रिय था। शासनके छोटे बड़े सभी कामोंकी खयं देख भाल करता था और फकीर तथा गृहस्थ सभीको न्यायकी दृष्टि से समान समझता था।"
१ यद्यपि हाथी पर आरोहण करना मुनियोंका आचार नहीं है, परन्तु शासन-प्रभावनाका महान् लाभ एवं सम्राटके विशेष आग्रहके कारण यह प्रवृत्ति अपवाद रूपसे हुई ज्ञात होती है। सं० १३३४ में रचित प्रभावकचरित्रमें मी, सूराचार्यके गाजत होनेका उल्लेख मिलता है।
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