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________________ ३८ ] प्रतापसिंघ म्होकमसिंघरी वात 1 जिका सारी ही सभाकै अर पंडितांकै दाय आई' । कितराहेक दिनां पंडतनु राष घणौं धन दान दिषणा दे बिदा कीधौ । पंडित भी राजी होय सरबाद दीधो । मन मांहे घणो सिहायो । बिदा होय प्रापरा घरांतु धायो । 3 जठे येक पीपलोद गांव मैवासा मांहे पूत । जिकांरै गढ नै मैवासो भी मजबूत । जिके मैवासी हुवा थका दोड़ धाड़ा' करै । जिण किणहीसूं न डरै । टणकपणा मैं तो भला रजपूत । पण मैवासा सबब करें चोरी गोहरीरो पण सूत । तिके छत्री धरम " तो न बिचारियो । उण पंडतनुं मारियो । घणो धन देष लेणरो लोभ धारियो । 9 0 I आ बात रावत प्रतापसिंघ कनै आई । सो सारां हीनूं न सुहाई । तद रावत वानूं कहायो थे प्रो कासूं" कर्म कीयो । ईसा पंडतां मार धन लीयो । प्रा रजपूतीकी रीत नही जको यां लोगांने लूट अर मारे यांने तो दान दिषणां देवो ही बिचार । थे मैवासी छो तो ओर जायगां दोड़ा-धाड़ो करो | म्हारै कनै आवे जावें जिकणसूं तो डरो । यांको धन तो परो दिरावो । रु ब्रह्महत्याको प्राछत करावो 14 । नही तो पछे ही पिछतावस्यौ । निदांन मारया जावस्यौ1" 1 2 3 15 १. दाय आई - समझमें आई, स्वीकार की गई । २. दिषरणा - दक्षिणा । ३. आसीरबाद - श्राशीर्वाद । ४. सिहायो - सराहना की । ५. मैवासा मांहे - जंगल में, पहाड़ोंमें। ६. डोडिया - राजपूतोंकी एक शाखा । ७. धाड़ा - डाका, चोरी । ८. रणकारणा में - सामर्थ्यमें । ६. चोरी सूत चोरी - डाकेका कार्य भी । १०. छत्री धरम -क्षत्रिय-धमं । १२. कासू - कैसा । १२. यांको - इनका । १३. परो दिरावो - दे दो । 5 । जठै रहै डोडिया' रज • १४. अरु करावो और ब्रह्म हत्याका प्रायश्चित कराओ । १५. पिछतावस्यो- पछताओगे । १६. निदांन जावस्यो- प्रन्तमें मारे जानोगे । Jain Education International - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003391
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottamlal Menariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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