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प्रतापसिंघ म्होकमसिंघरी वात
[ ३७ बिलंद जिसो बरयाम', राज सररण राषीजै ॥ संसार की न रहसी सिथर', सत्रा दहण रिण साररी । जावसी नहीं जाता जुगां, औ बातां ईण बाररी ॥३
बात
सौ म्होकमसिंघ इसी मोटी बातांनं बाय" मारै । नित धारणा पाहीज धारै । कलिमै बात उबारै। जिण तिण बेढमैं ईणरी हीज पहल होय । इणरी जा बळ न आवै कोय ।
एक दिन समें जोग रावत प्रतापसिंघ कनै1 एक पंडित पुराणीक11 आयो जिकण बडा बडा ग्रंथारो समुद्रको सो पार दरसायो। तिणसूं रावत धरम सास्त्र पुराण विद्या पंडिताईकी चरचा कराई।
१. बिलंद जिसो बरयाम - शेरबुलंदखां जैसे वीरको। __ ग. प्रतिमें 'वीरत धर उर वीच' पाठ है। २. ग. प्रतिमें 'रसा कीरत राषीज' पाठ है। ३. संसार' 'सिथर - संसारमें कुछ भी स्थिर नहीं रहेगा। ___की न' के स्थान पर ग. में 'क्रीत' और घ. में 'मांझ' पाठ है। ४. सत्रा' 'साररी- युद्ध में तलवार चलाने और शत्रुओंको मारनेकी। ग. में 'रिण सार' के स्थान पर 'उरसाल' पाठ है और घ. में 'सत्रा' 'साररी' के
स्थान पर 'अभंग सार प्राचाररी' पाठ है। ५. ईण बाररी- इस बारकी, इस समयकी । ६. ग. घ. प्रतियोंमें बातसे पूर्व निम्नलिखित सोरठा दूहा हैं
कवियां दाळद काय, लाषां लाष पसाव दे।। उ रावत परताप, हद वातां हरियंदतण ॥१ के केवी सिर काप, देवी हूंता भष दिया। ऊ रावत परताप, सायजादा सरणे रष ॥२ जग राषण जस वास, जु गम पता मोहकम जिसा ।
ईहगां पूरण प्रास, हद झोषा हरियंदतणा ॥३ ७ बाय - बान, प्रवृत्ति । बायके स्थान पर "बाथ" (बाहु) पाठ अधिक उपयुक्त है। ८. कलिमै - कलहमें, युद्ध में। ६. बेढमैं - युद्ध में। १०. कनै - पास, समीप । ११. पुराणीक - पौराणिक, पुराणोंका जानकार । १२. समुद्रको सो- समुद्र की भांति गहन ।
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