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________________ प्रतापसिंघ म्होकमसिंघरी वात [ ३५. भांत चकमाली कर अड़ा लड़ां तो कै तो सुरगनुं षडां' के षंड बिहंड होय पंतमै पड़ां । हर रजपूतीरा जवाहरांनूं रूपकांमैं जड़ा। तिका परमेसुर अणचीती थकी कीधी । मन मांहे चाहै छा जिका ही आज प्राण बधाई दीधी। अब सरबुलंदषांनुं हूं जायनै ल्याउ । उणनै सरणै राषीजै । अरु मौंने हरोल कीजै नै अवरंगजेबसू लड़ाई अर प्रांटारी बात दाषीजै । जिण बेळारो म्होकमसिंघरो तेज अरु उछाह ईसड़ो दरसावै तिणरो कसुर बाषाण करै' तो ही उछाह अरु प्राक्रमरो पार न पावै । । कवित-कथ सांभल' ईम'' कमो, बिहद उछाह बधारे । बरण अरुण बिलकुले, सूरपरण सरग सधारे ॥ बंण नव जोबन बनौं', चौंप बीबाह करण चित" । किनां जीत संग्राम बले, षल भांज लोध पिता ॥ १. चकमाली लड़ां - छेड़छाड़ कर भिड़ें और लड़ें। २. षड़ां - जावें, चलें। ३. पंड पड़ां - टुकड़े-टुकड़े हो कर रण-क्षेत्रमें पड़ें। ४. हर' 'जड़ा - और राजपूती शूरवीरता रूपी रत्नोंको काव्य रूपी प्राभूषणों में सुशोभित करें। ५. अरणचीत – बिना सोची हुई, कल्पनातीत । ६. मौंन कीजै - मुझे युद्धके अग्रभागमें रखिये । ७. दाषीजै – कहिये। ८. उछाह - उत्साह । ६. कवेसुर''करै - कवीश्वर बखान करें। १०. प्राक्रमरो-पराक्रमका । ११. सांभळ - सुन कर। १२. ईम - ऐसे । १३. बिहद बधारे - बेहद, बहुत उत्साह बढ़ाता है। १४. बरण बिलकुले - लाल वर्ण, दैदीप्यमान होता । १५. सूरपण''सधारे - शरणमें पाए हुएको रक्षा करे । १६. बंग' 'बनौं - नवयौवनसे युक्त दूल्हा बन कर । १७. चौंप चित - चित्तमें विवाहको प्राकांक्षा धारण कर। १८. किनां "षित - अथवा युद्ध में विजयी बन कर और अपने बलसे शत्रुओंको नष्ट कर धरतीको लेता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003391
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottamlal Menariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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