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प्रतापसिंघ म्होकमसिंघरी वात
[२६ भांत भीलरै माथै' तूटि पड़ियो। जिण बेळां' आईहो' म्होकमसिंघ आसमान जाय अड़ियो। भील तरवार बाही । सो तो ढाल उपरां लीधी अर भीलरै माथै तरवाररी बाह कींधी। दोहा-अति पोरस धरि धष उमंग', षग बाही कर पोज ।
अरी तणां सिर उपरै, बज्ज पड़े किनां बीज ॥१ अरणचंग असमर प्राछटो, हरियंद सुतन हटाल'' । पिसण तणौं सिर पाधरो", तूट पड्यो तिण ताल'' ॥२ मटका जेहो मूंडडो'", पड्यो पाछटे षाग' । तोउ उछटे तूंबड़ो', दड़ो कि दोटे लाग" ॥३
बात
इण भांत भीलनूं मार भीलरी साथ दोय च्यार आदमी था जिकांसू भी जाय अडिया। जिके भीलड़ा भी टूकड़ा टूकड़ा होय पड़िया।
१. माथै - मस्तक पर, सर पर । २. जिरण बेळां - जिस समय । ३. आईहो - अहिहो, ऐसा। ४. बाही - चलाई। ५. बाह कींधी - प्रहार किया। ६. पोरस धरि - वीरता धारण कर । ७. धष उमंग – उमंगमें भर कर । ८. अरी तणां - शत्रुप्रोंके । ६. बज्ज - वज्र, इन्द्रका शस्त्र। १०. किनां बीज - अथवा बिजली। . ११. अरगचंग पाछटी - तलवारका अचूक प्रहार किया। १२. हरियंद हटाळ - हरिसिंहके हठी पुत्रने । १३. पिसरण तरणौं - शत्रुका। १४. पाधरो - सीधा। १५. तिण ताळ - उस समय । १६. मटका 'मूंडड़ो- मटके, मिट्टीके गोल बर्तन जैसा मुंड। १७. पाछटे षाग – तलवारके लगने पर । १८. तोउ' तूंबड़ो - तो भी तुम्बेको तरह वह उछलता है । १६. दड़ो कि ''लाग -जैसे गेंद प्रहार होने पर उछलती है।
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