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प्रतापसिंघ म्होकमसिंघरी वात
[१७ पातसाहांसू प्राडो'। कंवारी घडांरो लाडो । अड़ संग्रामरो नाटसाल । चक्रवर्ती जिसड़ी बाल । आथरो मांणीगर । षट भाषारो जाणीगर । दातार सूर । जलाहल नूर' । बीराधिबीर । अाजाने बाह' । सरणाई सधीर । नारांरो नाह' । गज घड़ा मोडण । बांका मैवासा तोड़ण'। जिण प्रथ्वीरै ऊपरै बडा बडा जुद्ध कींधा। रिणषेत मांहे प्राय चवदंत हुवा तिकांनू मार लोधा। जिणारे कनै साष साषरा रजपूत रहै । जिके पडतै आसमांननूं भुजां सहै। स्यांमरा सहायक धरारा किवाड़। भावतांरा भांवता । अण १. आडो - मार्ग रोकने वाला, विरोधी। रावत प्रतापसिंह वास्तवमें मुगल शासकोंका
सहायक रहा है। प्रतापसिंहके नाम लिखे गये बादशाही फरमानोंसे इस मतको पुष्टि होती है। (विशेष देखिये-प्रतापगढ़ राज्यका इतिहास; स्व. डॉ. गौरीशङ्कर हीराचन्द ओझा) २. कंवारी घडांरो लाडो - कुमारी सेनाओंका अर्थात् जिस सेनासे युद्ध नहीं किया गया
हो, उनका प्यारा । राजस्थानी कथाओं में इस विशेषणका कई बार प्रयोग हुमा है। ३. अड़ संग्रामरो नाटसाल - वीरता पूर्वक युद्ध करने वाला। ४. आथरो माणीगर - अर्थ, धन-वैभवका उपभोग करने वाला। ५. षट भाषारो जाणीगर - षट् भाषानोंका ज्ञाता। षट् भाषानों में संस्कृत, प्राकृत, मागधी, शौरसेनी, पैशाची और अपभ्रंशका समावेश किया जाता है (षड्भाषा
चन्द्रिका) ६. जलाहल नूर - सूर्यकी भाँति कांतिमान । ७. प्राजाने बाह - प्राजानुबाहु । घुटनों तक लम्बी बाहों वाला। ८. सरणाई सधीर - शरणागतोंको धीरतापूर्वक रक्षा करने वाला। ६. नाह - नाथ, स्वामी। १०. गज घड़ा मोडण - हाथियोंके समूहोंको मोड़ देने वाला। ११. बांका मैवासा तोडण - शत्रु पक्षके सुरक्षित स्थानोंको तोड़ देने वाला। १२. रिणषेत - रणक्षेत्र, युद्ध भूमि । १३. चवदंत हुवा- प्रसिद्ध हो गया। १४. साष साषरा - शाखा-शाखाके । राजपूतोंको मुख्य शाखाएं ३६ मानी गई हैं
(मुंहता नैणसीको ख्यात, भाग २, नागरी प्रचारिणी सभा, काशी पृष्ठ ४८१)। १५. स्यामरा- स्वामीके ।। १६. धरारा किवाड़ - धरतीके रक्षक ।
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