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________________ प्रतापसिंघ म्होकमसिंघरी वात श्री गणेशाय नमः ॥ अथ रावत प्रतापसिंघ म्होकसिंघ' हरीसिंघोतरी वात लिष्यतं वात देवगढ रावत प्रतापसिंघ हरीसीघोत राज करै। जिको किसोहेक' । १. ख. प्रतिके जीर्ण होनेसे प्रारंभका पाठ स्पष्ट पढ़नेमें नहीं पाता। संभवतः "प्रथ रावत प्रतापसिंघरी बात" है। "रावत प्रातपसिंघ ने ग. मोहोकसिंघ हरीसिंघोत देवगढ़रा धणीरी महाराज बादरसिंघजी किसनगढ़रा राजारी करी"। "अथ रावत प्रतापसिंघ मौहकसिंघरी घ. [हरी] सिंघौत देवगढ़रा धणीरी बात लिष्यते” । २. रावत प्रतापसिंघ - राजस्थानको एक पूर्व रियासत देवलिया-प्रतापगढ़ के वि. सं. १७३० (ई.स. १६७३) से सं. १७६५ (ई.सं. १७०८) तक शासक रहे। इन्होंने अपने नाम पर वि. सं. १७५५ (ई. सं. १६६६) में प्रतापगढ़ नामक नवीन नगरको स्थापना की, जिससे प्रतापगढ़ देवलिया-प्रतापगढ़ रियासतकी राजधानीके रूपमें प्रसिद्ध हुप्रा । "रावत" अथवा "महारावत" प्रतापगढ़-नरेशोंकी उपाधि है। रावत शब्द संस्कृतके “राजपुत्र" शब्दसे विकसित हुआ है। जैसे-राजपुत्र>राजपुत्त> राजउत>रावउतसे रावत । ३. म्होकमसिंघ - रावत प्रतापसिंघका भाई जिसकी वीरताका प्रस्तुत वार्ता में विशेष वणन किया गया है। प्रतापगढ़का सालिमगढ़ नामक ठिकाना म्होकसिंघ और उसके वंशजोंके हो अधिकारमें रहा है (प्रतापगढ़ राज्यका इतिहास, स्व. डॉ. गौरीशङ्कर हीराचन्द प्रोझा पृष्ठ सं. १६५) । ४. हरीसिंघोतरी-हरिसिंघके पुत्रोंकी। हरिसिंघ-पुत्र>हरिसिंघउतसे हरिसिंघोत बना है। हरिसिंह वि. सं. १६८५ (ई. स. १६२८) से वि. सं. १७३० (ई. स. १६७३) तक देवलियाके शासक रहे । (वही)। ५. वात - बातके स्थान पर सर्वत्र ग. घ. में दवावत पाठ है। दवावैत-रघुनाथरूपक (संपादक-श्री महताबचन्द्र खारेड़, काशी ना.प्र.स.) और रघुवरजसप्रकास (सम्पादक श्री सीताराम लाळस, राज० प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर) के अनुसार-दवावंतके गद्यबंध और पद्यबंध दो भेद हैं। प्रस्तुत वार्ता में गद्यबन्ध दवावंत का प्रयोग हुआ है। ६. देवगढ़ - प्रतापगढ़ राज्यकी प्राचीन राजधानी देवलियासे तात्पर्य है। यह देवगढ़ मेवाड़के प्रसिद्ध ठिकाने देवगढ़से भिन्न है जहांके शासकोंकी उपाधि भी "रावत" ही रही है। ७. जिको किसोहेक - इसके स्थान पर ग. और घ. प्रतिमें "तिको षटदरसणरा दाळद्र हरे" पाठ है । षटदरसणसे यहां तात्पर्य, प्रदर्शनाचार्यों प्रादिसे है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003391
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottamlal Menariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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