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वात देवजी बगडावतारी
[६ "मैं पाया ।" ताहरां जोगी कहै । भोज तीन फेरा ले ज्यं मैं "तुझकुं" विद्या देऊ। ____ ताहरां भोज कहै “नाथजी पहली फेरा गुरु लै नै मुझकुं दिखावै तौ मे लेऊ ।" ताहरां जोगी फेरा लैण लागौ । ताहरां भोज जोगीनु कडाह माहे नांषि दीयौं'। पडतौ जोगी कहै छै मैं तौ तोघात घाली हुती' पिण तूं समधो (झ्यौ) पिण म्होरो माथौ साबतौ राणे । हाथ पग वाढे। फेर आइ जासी थारा वडा भाग। हुं सोनैरो पोरसौ' हुईस ।
जोगी तेल माहे पडीयौ। सोनै रौ पोरसौ हूवौ। हिवै ईयां पोरसौ घरमैं आणि राषियौ। सोनो बेचीजे । खाईजै विद्रवीजै । हिवै दारू काढीजै'। भठ्यां राति दिन तपत्यां रहै । अध्रम' कीजै । बाकरा मारीजै । दारू पीजै । पाठ पहर छकीया रहै । डूंम गावै । प्रांधा हुवा हाले। रांण ही षातरमै प्राण नहीं11 । ईयां निपट अन्याव मांडीयो । सेसरै माथै जाइनै अगनि लागी ।
ताहरां परमेश्वरजी आगै पुकार हुई । जु मतलौक माहा वघडावत बुरी चाल चालै । ईयांनुं सझा दोजै। ताहरां बीडो फिरीयौ । ताहरां माताजी बीडो झालीयौ । हु ईयांनु छेतरीस14। पिण ईयारौ
१. नांषि दीयौ - डाल दिया । २. तोनु हुती - तुझे मारना निश्चित किया था। ३. साबतौ राषे - साबित, पूरा सुरक्षित रखना। ४. वाढे - काटना। ५ पोरसौ - पारस पत्थर । लोक-मान्यतानुसार पारसके लगनेसे लोहा भी सोना हो
जाता है। ६. विद्रवीजै - बांटते। ७. दारू काढीज - मदिरा तैयार करते। ८. भठ्यां 'तपत्यां रहै - मदिरा तैयार करनेकी भट्टियां रात-दिन गरम रहती। ९. अध्रम - अधर्म। १०. बाकरा मारीजै - बकरे मारते। ११. रांग ही नहीं - राणाका (भिनायके शासकका) भी अनुशासन नहीं रखते । १२. सेसरै लागी - शेष नागके मस्तक पर जाकर अग्नि लगी। १३. बीडो झालीयौ - बीड़ा ग्रहण किया, काम करना स्वीकार किया। १४. हुं छेतरीस - मैं इनको छलूंगी।
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