________________
[ २० ] इसीप्रकार मुस्लिमकवि जानने "कथा छीताको" लिखी जिसमें उक्त विषयका विवेचन है। चन्द्रशेखरकृत हम्मीरहठमें अलाउद्दीनकी एक हिन्दू बेगम मरहट्ठीका उल्लेख है
"बेगम महति मरहट्टी माहताब जैसी"
जागती जुन्हाई जाके जोबन तरंग में। (छन्द सं. २६) कवि जोधराजने हमीररासो में अल्लाउद्दीनकी "चिमना" बेगमका उल्लेख कया है
__“चिमना बेगम एक और चितामनि साहौ"2 अमीरखुसरोने भी गुजरातके राजा कर्णकी पुत्री देवलदेवी और अलाउद्दीनके शाहजादे खिज्रखां सम्बन्धी एक प्रेमाख्यानकी रचना की थी।
आगे चल कर हिन्दू लेखकोंका यथार्थ अथवा कल्पनाके आश्रयसे अलाउद्दीनकी हिन्दू बेगमोंकी पुत्रियोंका संबंध हिन्दू राजकुमारोंसे जोड़ना स्वाभाविक ही हुआ। अलाउद्दीन जैसे शासकोंको क्रूरता और नृशंसताके वातावरण में अनेक जैन और मल्लिक मुहम्मद जायसी जैसे सूफी संतोंने भारतीय प्रेमाख्यानोंके आधार पर प्रेम और सौहार्दकी धारा प्रवाहित की, जिससे अन्य लेखक विशेष प्रभावित हुए और इन्होंने स्वमतानुसार एतद्विषयक आख्यानों
और काव्योंकी रचनाएं की। “वीरमदे सोनोगरारी वात" इसी प्रकारको एक प्रमुख रचना है। इसका पूर्वार्द्ध कल्पना और यथार्थका मिश्रण है, जिसमें अनेक भारतीय कथानक रूढ़ियोंका समन्वय हुआ है किन्तु इसका उत्तरार्द्ध ऐतिहासिक भित्ति पर आधारित है, जिसका समर्थन अनेक ऐतिहासिक ग्रन्थोंसे होता है। उदाहरणार्थ वांकीदासरी ख्यात और नैणसीरी ख्यातको लिया जा सकता है। वांकीदासरो ख्यातका उल्लेख इस प्रकार है
१. हिन्दुस्तानी एकेडेमी. प्रयागके संग्रहमें सुरक्षित । २. हमीर रासो, नागरी प्रचारिणी सभा, काशी । नीलकण्ठ विरचित । 'चिमनीचरित्रम्' नामक एक संस्कृत प्रेमाख्यान भी प्राप्त हुआ है, जिसका सम्बन्ध म्लेच्छाधीश अलावर्दी खानकी बेगम मानिकी और पं० दयादेव शर्मा के प्रेम
प्रसङ्गसे है । राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान ग्रन्थ-संग्रह, ग्रन्थाङ्क १२२६४ । ३. फाबर्सने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ रासमलामें लिखा है कि देवगढ़के (देवगिरिके) राजा
शंकरदेवसे कर्ण वाघेलाकी पुत्री देवलदेवीका विवाह निश्चित हो गया था किन्तु वह अलाउद्दीनके सेनापति अलफखां द्वारा हरली गई और बादमें इसका विवाह खिज्रखांसे कर दिया गया । भाग प्रथम, उत्तरार्द्ध, सम्पादक श्रीयुत् गोपाल
नारायणजी बहुरा, मंगल प्रकाशन, जयपुर, पष्ठ ३६३-३६६ । ४. 'हिस्ट्री आफ दी खिलजीज़' के लेखक डॉ. किशोरीशरण और श्री रामचन्द्र शुक्ल
आदिने चित्तोड़की पद्मिनी सम्बन्धी कथाकी कल्पनाका श्रेय जायसीको दिया है जो सत्य नहीं जानं पड़ता। वास्तवमें चित्तोड़के वीरों और वीराङ्गनागोंके संघर्षकी कथा जनतामें प्रचलित हो गई थी जिसका प्राधार जैन, सूफी और अन्य अनेक लेखकोंने लिया। इसकी पूरी जानकारी श्री शुक्ल आदिको नहीं रही।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org