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________________ [ १४ ] घटना है । इस युद्ध के अवसर पर हजारों ही वीराङ्गनाओंको जौहर व्रतका पालन करते हुए अग्निप्रवेश करना पड़ा था और कान्हड़दे, वीरमदे, राणकदे जैसे अगणित वीरोंको मातृभूमिको रक्षाके लिये प्रात्मोत्सर्ग करना पड़ा था। इस युगके विषयमें परम प्रादरणीय श्रीमान् मुनि जिनविजयजी, पुरातत्त्वाचार्यने, अपना मन्तव्य प्रकट करते हुए लिखा है____ 'वह समय भारतके लिए बड़ा भयङ्गर प्रलयकाल सा था । भारतको प्राचीन संस्कृति और समृद्धिका सर्वनाश करने वाला वह असाधारण विकराल काल था। उस कालदैत्यके कोपानलसे शताब्दियोंसे सञ्चित और सजित भारतको उस संसार-मोहिनी संस्कृति, समृद्धि, सार्वभौमता और सुरक्षितताका बहुत बड़ा भाग, कुछ ही क्षणोंमें भस्मीभूत-सा हो गया । पूर्वदेशका पाल-साम्राज्य, मध्यदेशका गाहडवाल साम्राज्य, दिल्ली-लाहोरका तोमर-राज्य, अजमेर-सपादलक्षका चाहमान राज्य, अणहिलपुरका चालुक्य महाराज्य, अवंती-मालवका प्रमार साम्राज्य, एवं दक्षिण-देवगिरिका यादव राज्य - इस प्रकार भारतके पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण जैसे चारों खण्डोंमें, कई शताब्दियोंसे अपनी बलवान सत्ता जमाये हुये बड़े बड़े राज्य और उनके शासक राजवंश इस दुष्ट दावानलकी दुर्दैवी ज्वालानोंसे कुछ ही दिनोंके अन्दर देखते देखते दग्ध हो गये । अपार समृद्धिसे भरे हुए उनके असंख्य राज्यभाण्डार घड़ियों में लुट गये। ___ अलाउद्दीनने अपनी दूषित मनोवृत्तिसे प्रभावित होकर भारतमें अनेक युद्ध किये, जिनमें हुए रक्तपात, लूट और अत्याचार वर्णनातीत हैं। ऐसे भीषण संघर्षोंके अवसर पर भी राजस्थानमें चित्तोड़, रणथंभोर, सिवानां और जालोरके शूरवीरों तथा वोराङ्ग नामोंने अनुपम प्रात्मोत्सर्ग कर अपनी मानमर्यादा एवं गौरवाभिमानकी रक्षा की थी। चित्तोड़, रणथंभोर और सिवाना युद्धोंके विषयमें तो मुस्लिम इतिहासकारों और इनके अनुयायी अन्य युरोपीय एवं भारतीय इतिहासकारोंने यत्किञ्चित् प्रकाश डाला है किन्तु जालोरयुद्धके विषयमें 'कान्हडदे प्रबन्ध' के अतिरिक्त इस पुस्तकमें प्रकाशित 'वीरमदे सोनीगरारी वात', मुंहता नैणसीरी ख्यात, भाग १ (पृष्ठ सं० २१२ से २२६), वांकीदासरी ख्यात (पृष्ठ सं० मुक्ताका अर्थ जागीरदार है । यह याबिन अहमद सरहिन्दी नामक एक अन्य इतिहासकारने भी अलाउद्दीनकी सेना द्वारा जालोर विजयका उल्लेख इन शब्दोंमें किया है- 'उसी वर्ष [७०० हि०, १३०००-१३०१ ई०] कमालुद्दीन गुर्गने [अलाउद्दीनका एक सेनापति] जालोर पर अधिकार जमा लिया और विद्रोही कस्तमरदेवको [कान्हडदेसे तात्पर्य है] नरक भेज दिया। [तारीखे मुबारकशाही, खलजीकालीन भारत से० अतहर अब्बास रिजवी, पृष्ठ २२४) । हमारे अन्य भारतीय और पश्चिमी इतिहासकारों ने भी भारतीय भाषाओंमें और मुख्यतः राजस्थानी भाषामें प्राप्त ऐतिहासिक सामग्रीकी उपेक्षा करते हुए उक्त विषयमें विशेष विवरण नहीं दिया है । १. कान्हडदे प्रबन्धका (राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर द्वारा प्रकाशित) प्रास्ताविक वक्तव्य, पृष्ठ ५६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003391
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottamlal Menariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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