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परिशिष्ट
प्रस्तुत पुस्तकमें प्रकाशित वार्तामोंसे सम्बद्ध विशेष कृतियों के कतिपय उद्धरण पाठकोंकी जानकारीके लिये यहां दिये जाते हैं ।
१ बगड़ावत
__ "बगड़ावत" नामक महाकाव्य राजस्थानी जनतामें मौखिक परंपरासे गाया जाता है। प्रस्तुत महाकाव्यमें संगीत और काव्यकी प्रारंभिक स्वाभाविक रमणीयताके दर्शन होते हैं। काव्यका प्रासङ्गिक परिचय पुस्तकको सम्पादकीय भूमिकामें दिया गया है। बगडावत काव्यके कतिपय विशेष अंश साहित्यानुरागियोंकी जानकारीके लिये नीचे प्रकाशित किये जा रहे हैं। संपूर्ण काव्यका गठन एक विशेष लय (तर्ज) पर आधारित है।
[ मङ्गलाचरण ] पैलां ही कणी देवने सिंवरजै और कुणीरा लीजै नाम । पैली अणगड़ देवने सिंवरो और गणपतरा लीजै नाम ।
सारदा ब्रह्मारी डीकरी, हंस बैठी बजावै वीण । खातो संवरे खतोड़ में, एरण धमता लवार । बेटो रजपूतरो आपने संवरे, उगतड़े परभात नीली पाखर पर माण्डे झूल ।
समरू देवी सारदा, नमण करू गणेस । पांच देव रच्छा करे, ब्रह्मा विस्तू महेस ।
[रावत भोजा-वर्णन ] लेणा हररा जी नाम, परभाते भोजने गावणा। लेणा भोजरा नाम, भोज दातारांरो सेवरो। मतवाळांरो मोड़, भोज दातारांरो सेवरो। ऊंचा बंधावे देवरा, सोनारा कळस चढ़ाय । सोनाने कांटी तोलणा, रूपाने लेणो ताय । रूप उधारो नी मले, मऱ्या न जीवे कोय ।
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