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________________ वोरमदे सोनीगरारी वात [ ६६ चंदणरो घर करनै गोदमै धड माथो मेलन' सती हूई। साह वेगमरै नै वीरमदेरै रूसणो भागो' । पातिसाह पाछो दिली गयो। इति श्री वीरमदे सोनिंगा[गरा]री वात संपूर्ण । १. मेलन - रख कर। २. रूसणो भागो-आपसका रोष दूर हुमा। रूसणो <सं. रोष, भागो <सं. भग्न । ३. ख. ग. और घ. प्रतियोंके अन्तमें यह पाठ है 'वडी वेढ (ग. वेठ) हूई। रावजीरा राजपूत हजार ५ (ग. पांच) काम (ग. काम) आया। हजार २ (ग. दोय) लोहां पडीया ने पातिसाहजीरा सिपाई हजार १५ काम] (ग. काम) आया। हजार १० ११ लोहां पडीया (ग. पड़िया) वडौ (ग. बडो) गजगाह हुवौ (ग. हुवो)। इण समीयारा गीत गुण भावन घणा ही छ। पछै पातिसाह दिल्ली गयौ (ग. पातिसाहजी दिली गया)। संवत १३०० जालोर (घ. जालौर) वसीयौ। संवत १४१६ गढरी नीव दोधी। संवत १४३७ अलावदीन पातिसा (घ. पातिसाह) जालोर (घ. जालौर) लोधौ ।। इति श्री वीरमदेजीरी वार्ता संपूर्ण । भावन-स्व. श्री सूर्यकरणजी पारोकने "गुणगान" अर्थ दिया है (राजस्थानी वाता पृष्ठ १०३) । प्रेम अथवा समान प्रकट करनेके लिये रचित राजस्थानी काब्यके एक विशेष प्रकारको "भावन" कहते हैं। ग. प्रतिमें संवतवार घटनामोंका उक्त लेख नहीं है और पुष्पिका लेख इस प्रकार है 'इति श्री वीरमदे सोनिगरारी वात पूर्ण । घ. प्रतिका पुष्पिका लेख इस प्रकार है-'इति श्री वीरमदेजीरी वार्ता संपूर्ण: ॥श्री।। मुनि पुस्यालचंद लपि कृ [कृतं] संवत् १८३६ वर्षेः ॥ फागुण बदि ११ बुधवासरेः ॥ श्री गुंदवच नगर मध्यः ॥' प्रागे यह कवित्त है"कवित्तः- किसी चंद्र विण रयण, किसौ पनि वीण तरवर । किसी पुरष वीण नार, किसो हंस विण सरवर । किसी देवल बीण देव, किसौ देव विण पूजारौ । किसी प्ररथ विण वात, किसी वात पिण पडरौ । किसो खड्ग विरण षोत्री, • रूधा जायनसी । कवि गद कहै ही राय हर, विण दोधा कीरती कीसी ॥१ पडारौ- पाण्डित्य, सं.। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003391
Book TitleRajasthani Sahitya Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottamlal Menariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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