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परिशिष्ट संख्या-१। परिशिष्टसंख्या-१।
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मुझ मनि लागिय खंति जालंधर देसह भणिय । तीरथ वंदण रेसि नगरकोटि तउ आवियउ ॥ १॥ बाणगंगा पातालगंग व्याहनइ जसु तडिहिं । वणराई घण घाट वाट ति घाटिहिं आगलिय ॥ २॥ तहिं माहमाभंडार पहिलडं पहिलइ जिणभवणिं । दीठउ संतिजिणिंद नयण अमियरस पारणउं ॥ ३ ॥ जिणहरि बीजइ रीजु मनि अधिकेरउं ऊपजए। जहि सोवनमय बिंब रूपचंद रायह तणउं ॥ ४ ॥ जिणि दीठइ संतोसु मण आणंदिहिं ऊससए । 'अंधारइ उद्योत जयउ सुजगगुरु वीरवरु ॥ ५ ॥ जइ त्रीजइ प्रासादि सरवरि राजमराल जिम । संभाविउ रिसहेसु चंपकि चंदनि थुति जलिहिं ॥ ६ ॥ हिव चडियउ चमकंत अति ऊंचइ गढि कांगडए । इहु जाणे मइ किद्ध सिद्धिसिला आरोहणउ ॥ ७ ॥ अलजउ अंगि न माइ माइ ताय घरु वीसरिय । सरिय सयल मह कज्ज तहिं रिसहेसर दंसणिहिं ॥ ८ ॥ जो हीमालय हुंत राय सुसम्मिहिं जाणियउ । नेमिसरि जयवंति कंगड कोटिहिं आणियउ ॥९॥ चंद्रवंसि जे राय राणी जसु पयतलि लुलइ । अंबिकदेवि पसाइ तहिं मनवंछित फल मिलई ॥ १० ॥
भास।
कंचणमय कलसिहिं सहिय ए च्यारइ प्रासाद ।
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