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स्वीकृति प्रदान की। हम आदरणीय रंजन सिंघी व समस्त सिंघी परिवार के इस साहित्य एवं संस्कृति प्रेम की सराहना करते हैं और इस अनुकरणीय सहयोग हेतु आभार प्रकट करते हैं।
पुनर्प्रकाशन की इस शृङ्खला की प्रथम मणि के रूप में "कथाकोष प्रकरण" का प्रकाशन हुआ और उसे विद्वद्जनों ने सराहा। दूसरी मणि के रूप में पूर्वाचार्य विरचित 'जयपायड निमित्त शास्त्र' अपरनाम प्रश्न व्याकरण प्रस्तुत है। ६८० वर्ष पूर्व लिखित यह पुस्तक निमित्तशास्त्र के अन्तर्गत प्रश्न विद्या विषय पर है। प्राचीन मनीषियों ने अज्ञात तत्त्वों और भावों को जानने हेतु, एवं कई प्रकार की गूढ़ विद्याओं का ज्ञान प्राप्त करने के लिए, विभिन्न आयामों के चिन्तन व प्रयोग किए थे। यह ज्ञान वे गूढ़ प्रणाली में निबद्ध करते थे। प्रस्तुत ग्रन्थ ऐसे ही किसी अज्ञात तत्त्व को समझने समझाने का एक प्रयास है। आशा है सुधी पाठक, विशेषकर शोधकर्ता, इसे उपयोगी पाएंगे।
प्रकाशन से जुड़े सभी महानुभावों का हार्दिक धन्यवाद ।
देवेन्द्रराज मेहता संस्थापक एवं मुख्य संरक्षक प्राकृत भारती अकादमी जयपुर
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