SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 15
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ किञ्चित् प्रास्ताविक प्रस्तुत जयपायड नामक निमित्त शास्त्रकी ताडपत्रपर लिखी हुई प्राचीन प्रति हमको जेसलमेरके एक ज्ञान भण्डारमें प्राप्त हुई थी। इससे पूर्व, हमारे दृष्टिगोचर यह ग्रन्थ नहीं हुआ था, इसलिये हमने इसकी प्रतिलिपि करवा ली, और फिर इसका विषयावलोकन करनेसे हमें यह एक महत्त्वकी रचना ज्ञात हुई, अतः इसको इस सिंघी जन ग्रन्थ माला द्वारा प्रकाशित करनेका हमने संकल्प किया। जेसलमेर में प्राप्त यह ताडपत्रीय पुस्तिका, जैसा कि इसके अन्तमें लिखा हुआ है-विक्रम संवत् १३३६ में लिखी गई थी अर्थात् आजसे कोई ६८० वर्ष पूर्वकी लिखी हुई है। इस पुस्तिकाके कुल मिलाकर २२७ ताडपत्र हैं। अक्षर सुवाच्य हैं। पर कहीं कहीं स्याही घिस जानेसे अक्षर अदृश्यसे हो गये हैं। लिपिकर्ता विषय और भाषासे अनभिज्ञ होनेके कारण प्रतिका पाठ बहुत ही अशुद्ध और भ्रष्टखरूपवाला लिखा गया है। ग्रन्थको प्रेसमें छपनेके लिये देना निश्चित हुआ तब इसका कोई दूसरा प्रत्यन्तर कहीं से मिल सके तो पाठसंशोधनमें विशेष सहायक हो सके इस विचारसे, पूना, पाटण, अहमदाबाद, बडोदा आदिके प्रसिद्ध जैन भण्डारों में इसकी खोज की गई, पर उसमें सफलता नहीं मिली। पीछेसे भावनगरके भण्डारमें एक कागज पर लिखी प्रति प्राप्त हुई, पर, वह जेसलमेरवाली प्रतिसे भी अधिक भ्रष्ट पाठवाली निकली; अतः संशोधनमें उसका कोई खास उपयोग नहीं हुआ। तब हमने केवल उक्त भ्रष्ट पाठवाली प्रतिके उपरसे ही यथामति पाठ संशोधन आदि करके प्रस्तुत आवृत्तिको, इस खरूप में प्रकट कर देनेका प्रयत्न किया है। ग्रन्थके अवलोकन मात्रसे ही विशेषज्ञ विद्वानको ज्ञात हो जायगा कि इसका पाठसंशोधन करनेमें हमको कितना श्रम उठाना पड़ा है। पुस्तिकाकी प्रायः प्रत्येक पंक्ति भ्रष्ट पाठवाली प्रतीत हो रही है। न मालूम मूलप्रति लेखककी अज्ञानताके कारण ऐसा पाठभ्रष्ट हुआ है अथवा किसी भ्रमवश ऐसा अशुद्ध पाठ लिखा गया है । ग्रन्थगत विषय बहुत ही गोपनीय माना जाता रहा है। कोई विरल ही व्यक्ति इसका अध्ययन-मनन कर सके-ऐसी रहस्यमयी भावना, इस विषयका ज्ञान प्राप्त करनेके विषयमें प्राचीन कालसे चली आ रही है; अतः इसकी दुर्लभता और अप्रसिद्धि खाभाविक है। ग्रन्थका विषय निमित्तशास्त्रान्तर्गत प्रश्नविद्या विषयक है। अतः इस रचनाका अन्य नाम प्रश्नव्याकरण ऐसा दिया गया है । प्रश्नचूडामणी, प्रश्नप्रकाश आदि नामके इस विषयके कई प्राचीन ग्रन्थोंका उल्लेख अन्यान्य ग्रन्थोंमें मिलते हैं । इसी आवृत्तिके अन्तमें ज्ञानदीपक नामक एक संक्षिप्त चूडामणिसार शास्त्र भी मुद्रित किया गया है जो इसी विषयकी एक संक्षिप्त रचना है। यह रचना भी हमें जेसलमेरके एक भण्डारमें फुटकल पन्नोमें मिली है। जेसलमेर, जो पुस्तिका प्राप्त हुई उसकी पट्टिकापर 'जयपाहुड' ऐसा नाम लिखा हुआ था इसलिये हमने प्रन्थके मुद्रणमें मुख्य शिरोलेख इसी नामसे अंकित कर दिया; पर पीछेसे ऊहापोह करने पर 'जयपाहुड' नहीं परंतु 'जयपायर्ड' ऐसा नाम समुचित मालूम दिया। अतः हमने मुखपृष्ठ पर इसी नामका उपयोग करना उचित समझा है। मूल ग्रन्थकी तीसरी गाथामें इसी शब्दका प्रयोग किया गया है (12) Jain Education Intemational For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.003385
Book TitleJaypayad Nimmittashastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2009
Total Pages76
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy