________________ [माथा 45-51] ज्ञानदीपकाख्यं नकार-पकार-फकार-[मकार]-भकारस्तथा ऊकारश्च एते प्रश्ने लब्धाः पित्तलकं कथयन्ति / णकार-तकार-थकार-दकार-धकार-इकारश्च एते कांस्यं कथयन्ति / तथा अत्र न खलु संदेहोऽस्तीति / / 44 // कणयक्खरं पयासइ मरगयमाणिकपहुईरयणाई। मुत्ताहीरयपहुई तारक्खरयं णे संदेहो // 45 // कनकाक्षरं मरकतमाणिक्यप्रभृतिरत्नानि प्रकाशयति, ताराक्षरं च मुक्ताहीरकप्रभृतिकं प्रकाशयति // 45 // कक्करतालयपहुदि [तं]वक्खरयं [च] भणइ णो 'चित्तं / लोहक्खरेहिं जाणह रयणाई इंदनीलपहुदीणि // 46 // ताम्राक्षरः तालकप्रभृति भणति नात्र चित्रम् , लोहाक्षरैश्च इंद्रनीलप्रभृतीनि रत्नानि " जानीतेति // 46 // कंसक्खरं पयासइ रयणऽसेसाई काचपहुदीणि / सेसं सीसयपहुदि पित्तलसीसाइ अक्खरयं // 47 // कंसाक्षरं काचप्रभृतीनि रत्नविशेपाणि प्रकाशयति / शेषं पित्तलसीसकाद्यक्षरं शीशकाभृतीनि रत्नविशेएं प्रकाशयति // 47 // उत्तरवण्णपहाणं पण्हे गढियं पयासए णिचं / धाउमगढिअं अहरं अक्खरयं भणइ सच्चमियं // 48 // प्रश्न उत्तरवर्णाः प्रश्नमक्षरं नित्यं घटितं धातुं प्रकाशयति / अधरमक्षरं अघटितं धातुं भणतीति सत्यमिदम् / / 48 / / आलिंगिएहिं जाणह कंकणकेऊरपहुदि आहरणं / / अहरक्खरेहिं गढिअं कच्चोलयपहुति भायणयं // 49 // घटिते धातोर्लब्धे सति पुनरपि प्रश्ने आलिंगिताक्षरैः घटितं केयूरप्रभृतिकमाभरणक भवतीति / अधराक्षरर्घटितं कचोलकप्रभृति भाजनं भवति // 49 // उत्तरवण्णपहाणं पण्हे दरिसेइ अहिणवाहरणं / अहरक्खर अपहाणं उवभुत्तं णत्थि संदेहो // 50 // आभरणे प्राप्ते सति पुनरन्यप्रश्ने उत्तरवर्णप्रधानं प्रश्नमभिनवाभरणं दर्शयति / अधराझरेऽप्रधानं च उपाभरणं दर्शयतीति नास्ति संदेहः // 50 // सबे उत्तरवण्णा भवंति सुरलोअलोअणाहरणं / अहरक्खराइ णूणं माणवलोयस्स जंतूणं // 51 // पुनरन्यप्रश्ने सर्व एवोत्तरवर्णाः सुरलोकानामाभरणं ब्रुवन्ति / अधराक्षराणि मानवलोकस्य / द्विपदचतुष्पदजंतूनामाभरणं ब्रुवन्ति // 51 // 10 पहुवि / 20 णस्थि / 30 सचं ध।। (109) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org