________________ 92 चूडामणिसारशास्त्रम् / [गाथा 37-44] गोणाससप्पजाई टवग्गवण्णा फुडं पयासंति / लहुअविसाणं जाई दिट्ठीणं होई तवग्गवण्णेहिं // 37 // गोनसो सर्पजातिं टवर्गवर्णाः स्फुटं प्रकाशयन्ति / लघुकविषाणां जंतूनां वृश्चिकादीनां जाति दृष्टिं च व्याघ्रादिकं तं तवगर्गो वर्णो वदति // 37 // विसमच्छ-दाहि(ढि ? )दुंदुहि-कीडविसेसाई किं चुजं / जइ किर लद्धो पण्हे पवग्गओ पण्हचउरेण // 38 // यदि प्रश्नचतुरेण प्रश्ने पवर्गो विलब्धस्तदा विषमत्स्यान् शृंगिकाप्रभृतीन् दंष्ट्रान् मकरनक्रप्रभृतीन दुंदुभिप्रभृतिकीटविशेषकान् वक्ति अत्र किमाश्चर्यमिति / / 38 // ससि-जलण-बाण-मुणि-गह-रुद्द-सरा वग्गाण दु-तीयवण्णा य / वुञ्चति धम्मधाउं अधमं चिय सेससरवण्णा // 39 // प्रथम-तृतीय-पंचम-सप्तम-नवमैकादशमाः स्वराः, तथा कवर्गादिसप्तवर्गाणां द्वितीयवर्णाश्च धाम्यधातुं वदन्तीति // 39 // रवि-रुद्द-पक्खसरओ पंचमहीणा कवग्गवण्णा य / कणयं चवन्ति तारं सत्तमवग्गो मुणिंदुसरओ य // 40 // // द्वादशमैकादशम-द्वितीयस्वराः पंचमहीनाः कवर्गवर्णाश्च कनकं वदन्ति / रजतं च सप्तमो वर्ग: तथा सप्तमः प्रथमः स्वरश्चेति // 40 // तंब च तइओ सरओ पंचमहीणो चउत्थओ वग्गो / लोहं दसमो सरओ अट्ठमवग्गो मैकारो य // 41 // तानं तृतीयस्वरः पंचमहीनः चतुर्थो वर्गश्च, लोहं दशमस्वरः तथाष्टमो वर्गों मकारश्च // वदति वचनपरिणामेन पूर्वतो न वर्तत इति // 41 // वंगं तइओ वग्गो पंचमहीणो कवग्गपंचमओ। अट्ठम-पंचमसरओ पण्हे लद्धो पयासेइ // 42 // वंग त्रपु पंचमहीनस्तृतीयो वर्गः, तथा कवर्गपंचमो वर्णश्च, तथाऽष्टमः पंचमः स्वरः प्रश्ने लब्धः प्रकाशयतीति // 42 // - छठुसरो एकंतो पंचमवण्णो अ तईयवग्गस्स / जइ पाविजइ पण्हे ता णूणं सीस मुणहें // 43 // पष्टस्वर एकाकी तथा तृतीयवर्गस्य पंचमो वर्णश्च यदि प्र प्राप्यते तदा नूनं सीसकं कथयन्ति // 43 // न-प-फ-म-भा ऊ वण्णा पण्हे लद्धा कुणंति पित्तलयं / ण-त-था द-धा इ-आरा कंसं ण हु अत्थि संदेहो // 44 // प्रधाम। 250 तंमं / 30 तह म। ४प्र. वग्गो वि। 50 भणए। (108) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org