________________ जयपाहुडनाम निमित्तशास्त्रम्। [गाथा 374-378 ] पणयालसयं अद्दुत्तरं च दोहावग्गाहिवुव(ध?)रासी / अवसा(से)साणं छण्हं, एक्कोत्तरिया हवइ विठ्ठी(डी) // 374 / / पूर्वादिस्थस्य प्रादक्षण्येन बुधका(?)विन्यस्य प्रश्नाक्षरसहितं कृत्वा गुणयेत् // 374 / / पंच य सत्त यणव तेरसे य अट्ठादसमे य सोलसयं / बत्तीसं तित्तीसं, जाणसु गुणकार रासीओ // 375 // पूर्वादितः प्रश्ना सहिता बुधका(?) यथास्थितप्रस्तुति] दिक्चक्रं गुण्य सोधनिकां यथावं विशोधयेत् // 375 // पंचगतिगछसत्तट्ठमा य ते होंति सोहणा कमसो / धय धूमे(म) सीह साणा, वसहमि पुक्कितिया एते // 376 // णियव(?णवयोक्खरंमि जाणे, सोहणयं चोदसे तु वाणि(?) / पण्णरसगए भरिया, सोलसढके वियाणाहि // 377 // एसो [सो] संखेवो, भणिओ जिणभासिओ समासेण / जाव य णिहइ णामं, लाभालाभेसु सन्वेसु // 378 // एष सः उक्तेन प्रकारेण सात्त्विकाय पुरुषाय बुद्धिबलं ज्ञात्वा, ने नै)तदभव्यापि(य) // नास्तिके(का)याश्रद्धधानया(नाय) अकुलपुत्राय जात्यादा(द)जात्यसंपन्नाय देयम् / गुरुशुश्रूषकाय ज्ञानवते चास्तिकाय देयमिति / जिनमहणपरिज्ञानार्थ कृतं यो यन्नामाक्षरैरक्षरैः लाभालाभादि स सर्व वक्तव्यं प्रो इ]ति // 376-378 // // प्रश्नव्याकरणं समाप्तम् // // संवत् 1336 वर्षे चैत्र शु० 1 // इति संपूर्णम् // (102) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org