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________________ १८२ आवश्यक मूलसूत्रम् - २- ४ / २६ अच्छसि जाव एक्कंपि ता दारगरुवं जायं तो देमो, पडियन्नं, दिन्ना, एवं कालो वच्चइ, अन्नया तस्स दारगस्स अंमापितीहिं लेहो विसजिओ-अम्हे अंधलीभूयाणि जइ जीवंताणि पेच्छसि तो एहि, सो लेहो उवणीओ, सो तंवाए अंसूणि मुयमाणो, तीए दिट्ठो, पुच्छइ, न किंचि साहइ, तीए लेहो गहिओ, वाइ भइ मा अधितिं करेहि, आपुच्छामि, ताए कहियं सव्वं अम्हापिऊणं, कहिए विसज्जियाणि, निग्गयाणि दक्खिणमहुराओ, साय अन्निया गुव्विणी, सा अंतरा पंथे वियाया, सो चिंतेइ अम्मापियरो नाम कहिंतित्ति न कयं, ताहे रमावेंतो परियणो भणेइ अन्नियाए पुत्तोति, कालेण पत्ताणि, तेहिवि से तं चैव नामं कयं अन्नं न पइडिहित्ति, ताहे सो अन्नियपुत्तो उम्मुक्कबालभावो भोगे अवहाय पव्वइओ, थेरतणे विहरमाणो गंगायडे पुप्फभद्दं नामं नयरं गओ ससीसपरिवारो, पुप्फकेऊ राया पुप्फवती देवी, तीसे जमलगाणि दारगो दारिगा य जायाणि पुप्फचूलो पुप्फचूला य अन्नमन्नमणुस्ताणि, तेन रायाए चिंतियं जइ विओइअंति तो मरंति, ता एयाणि चैव मिहुनगं करेमि, मेलित्ता नागरा पुच्छिया- एत्थं रयणमुप्पा तस्स को ववसाइ राया नवरे वा अंतेउरे वा ? एवं पत्तियावेइ, माया वारंतीए संजोगो घडाविओ, अभिरमंति, सा देवी साविया तेन निव्वेएण पव्वइया, देवो जाओ, ओहिणा पेच्छइ धूयं, तओ से अज्झहिओ नेहो, मा नरगं गच्छिहित्ति सुमिणए नए दंसेइ, सा भीया रायाणं अवयासेइ, एवं रत्तिं २, ताहे पासंडिणो सद्दाविया, कहेह केरिसा नरया ?, ते कहिति, ते अन्नारिसग्गा, पच्छा अन्नियपुत्ता पुच्छिया, ते कहेउमारद्धा- 'निच्चंधयारतमसा०, सा भाइ- किं तुम्भेहिवि सुमिणओ दिड्डो ?, आयरिया भणंति-तित्थयरोवएसोत्ति, एवं गओ कालेणं देवो देवलोयं दरिसेइ, तत्थवि तहेव पासंडिणो पुच्छिया जाहे न याणंति ताहे अन्नियपुत्ता पुच्छिया, तेहिं कहिया देवलोगा, सा भणइ - किह नरगा न गंमति ?, तेन साहुधम्मो कहिओ, रायाणं च आपुच्छइ, तेन भणियं-मुएमि जइ इहं चेव मम गिहे भिक्खं गिण्हइत्ति, तीए पडिस्सुर्य, पव्वइया, तत्थ य ते आयरिया जंधाबलपरिहीणा ओमे पव्वइयगे विसज्जेत्ता तत्थेव विहरंति, ताहे सा भिक्खं अंतेउराओ आनेइ, एवं कालो वच्चइ, अन्नया तीसे भगवईए सोभनेनऽज्झवसाणेण केवलनाणमुप्पनं, केवली किर पुव्वपत्तं विनयं न लंघेइ, अन्नया जं आयरियाण हियइच्छियं तं आनेइ, सिंभकाले य जेण सिंभो न उप्पज्जइ, एवं सेसेहिवि, ताहे ते भणंति-जंमए चिंतियं तं चेव आनीयं, भणइ - जाणामि, किह ?, अइसएण, केण ?, केवलेन, केवली आसाइओत्ति खामिओ, अन्ने भणति - वासे पड़ते आणियं, ताहे भांति - किह अज्जे ! वासे पडते आणेसि ?, सा भणइ जेण २ अन्तेन आगया, कह जाणासि ?, असएण, खामेइ, अद्धितिं पगओ, ताहे सो केवली भाइ-तुम्भेवि चरमसरीरा सिज्झिहिह गंगं उत्तरंता, तो ताहे चेव पउत्तिन्नरे, नावावि जेण २ पासेनऽवलग्गइतं तं निवुड्डुइ मज्झे उट्टिया सव्वावि निबुड्डा, तेहिं पाणीए छूढो, नाणं उप्पन्नं, देवेहि महिमा कया, पयागं तत्थ तित्थं पवत्तं, से सीसकरोडी मच्छकच्छमेहिं खज्जुंती एगत्थ उच्छलिया पुलिणे, सा इओ तओ छुब्भमाणा एत्थ लगा, तत्थ पाडलिबीयं कहवि पविट्टं, दाहिणाओ हणुगाओ करोडिं भिदंतो पायगो उडिओ, विसालो पायवो जाओ, तत्थ तं चासं पासंति, चिंतेंति- एत्थ नयरे रायस्स सयमेव रवणाणि एहिंति तं नरं निवेसिंति, तत्थ सुत्ताणि पसारिज्जति, नेमित्तिओ भणइ-ताव जाहि सिवा वासेति तओ नियत्तेज्जासित्ति, ताहे पुव्वाओ अंताओ अवरामुहो गओ तत्थ सिवा उडिया नियत्तो, उत्तराहुत्तो तत्थवि, पुणोवि पुव्वाहुत्तो गओ तत्थवि, दक्खिणहुत्तो तत्थवि सिवाए वासिय, तं किर वीयणगसंठियं For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.003377
Book TitleAgam Sutra Satik 40 Aavashyak MoolSutra 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year2000
Total Pages808
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 40, & agam_aavashyak
File Size16 MB
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