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आवश्यक मूलसूत्रम्-१-१/१ तुट्टेण छोडिआ, दिट्ठो लेहो, अवगए लेहत्थे विसन्नो पोत्ताई फालेऊण निग्गओ, चिंतियंचणेणंजाव एसा न पाविया ताव कहमच्छामित्ति परिभसंतो य अन्नं रज्जं गओ, सिद्धपुत्ताण ढुक्को, तत्थ नीई वक्खाणिजइ, तत्थवि अयं सिलोगो
'न शक्यं त्वरमाणेन, प्राप्तुमर्थान् सुदुर्लभान् ।
भार्यां च रूपसम्पन्नां, शत्रूणां च पराजयम् ॥१॥ एत्य उदाहरणं-वसंतपुरे नयरे जिनदत्तो नाम सत्यवाहपुत्तो, सो य समणसहो, इओ य चंपाए परममाहेसरो धनो नाम सत्यवाहो, तस्स य दुवे अच्छेरगाणि-चउसमुद्दसारभूया मुत्तावली धूया य कत्रा हारप्पभत्ति, जिणदतेण सुयाणि, बहुप्पगारं मग्गिओ न देइ, तओऽनेन चट्टवेसो कओ, एगागी सयं चेव चंपं गओ, अंचियं च वट्टइ, तत्थेगो अज्झावगो, तस्स उवडिओ पढामित्ति, सो भणति-भत्तं मे नत्थि, जइ नवरं कहिंपी लभसित्ति, धणो य भोयणं ससरक्खाणं देइ तस्स उवढिओ, भत्तं मे देहि जा विजं गेण्हामि, जं किंचि देमित्ति पडिसुयं, धूया संदिट्ठाजं किंचि से दिजाहित्ति, तेन चिंतियं-सोहणं संवुत्तं, बल्लूरेणं दामिओ विरालोत्ति, सो तं फलाइरोहिं उवचरइ, सान गेण्हइ उवयारं, सो य अतुरिओ णीइगाही थक्के थक्के संमं उवचरइ, ससरक्खा यतं खरंटेइ, तेन सा कालेणावज्जिया अज्झोववन्ना भणइ-पलायऽम्ह, तेन भणियं-अजुत्तमेयं, किंतु तुम उम्पत्तिगा होहि, वेजावि अक्कोसेजाहि, तहा कयं, वेजेहिं पडिसिद्धा, पिया से अद्धितिं गओ, चट्टेण भणियं-परंपरागया मे अस्थि विज्ञा, दुक्करो य से उवयारो, तेन भणियंअहं करेमि, चट्टेण भणियं-पउंजामो, किंतु बंभयारीहिं कजं, तेन भणियं-अत्थि भगवंतो ससरक्खा ते आनेमी, चट्टेण भणियं-जइ कहवि अबंभयारिणो होति तो कजं न सिज्झइ, ते य परियाविजंति, तेन भणिय-जे सुंदरा ते आणेमि, कतिहिं कजं?, चउहि, आनीया सद्दवेहिणो य दिसावाला, कयं मंडलं, दिसापाला भणिया-जओ सिवासद्दोतं मणांगं विंधेजह, स सरक्खा य भणिया हुंफुटत्तिकए सिवारूयं करेजह, दिक्करिगा भणिया-तुमं तह चेव अच्छेजह, तहा कयं, विद्धा ससरक्खाण, पउणा चेडी, विपरीणओ धण्णो, चट्टेण वुत्तं-भणियं मए-जइ कहवि अबंभयारिणो होति कजं न सिज्झईत्यादि, धणेण भणियं-को उवाओ ?, चट्टेण मणियंएरिसा बंभयारिणो हवंति, गुत्तीओ कहेइ, दगसोकराइसु गवेसिओ नस्थि, साहूण ढुक्को-तेहिं सिट्ठाओ
'वसहिकहनिसिज्जिंदियकुटुंतरपुव्वकीलियपणीए । अइमायाहारविभूसणा य नव बंभगुत्तीओ ॥१॥ एयासु वट्टमाणो सुद्धमनो जो य बंभयारी सो ।
जम्हा उ बंभचेरं मनोनिरोहो जिणाभिहियं ॥२॥ उवगए भणिया-बंभयारीहिं मे कजं, साहू भणइ-न कप्पइ निग्गंथाणमेयं, चट्टस्स कहियंलद्धा बंभयारी न पुण इच्छंति, तेन भणियं-एरिसा चेव परिचत्तलोगवावारा मुणओ भवंति, किंतु पूजिएहिंवि तेहिं कज्जसिद्धी होइ, तंनामाणि लिक्खंति, न ताणि खुद्दवंतरी अक्कमइ, पूइया, मंडलं कयं, साहुणामाणि लिहियाणि, दिसावाला ठविया, न कूवियं सिवाए, पउणा चेडी, धनो साहूणमल्लियंतो सट्टो जाओ, धम्मोवगारित्ति चेडी मुत्ताफलमाला य तस्सेव दिन्ना,
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