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________________ ३८१ उद्देशक : ४, मूलं-२३७, [भा. १८५३] मू. (२३५) जे भिक्खू गामारस्खियं अत्तीकरेइ, अत्तीकरेंतं वा सातिजति ।। मू. (२३६) जे भिक्खू गामारखियं अत्तीकरेइ, अच्चीकरेंतं वा सातिजति ।। मू. (२३७) जे भिक्खू गामारक्खियं अत्थीकरेइ, अत्थीकरेंतं चा सातिञ्जति ।। मू. (२३८)जे भिक्खू देसारखियं अत्तीकरेति अत्तिकरेंतं वासातिजति ।। मू. (२३९) जे भिक्खु देसारखियं अच्चीकरेति, अधीकरेंतवा सातिजति ।। मू. (२४०) जे भिक्खु देसारखियं अस्थी करेति, अत्थी करेंतं वा सातिञ्जति ।। मू. (२४१)जे भिक्खू सीमारखियं अत्तीकरेइ, अत्तीकरेंतं वा सातिञ्जति॥ मू. (२४२) जे भिक्ख सीमारक्खियं अच्चीकरेइ, अच्चीकरेंतं वा सातिजति ।। मू. (२४३) जे भिक्खू सीमारखियं अस्थीकरेइ, अस्थीकरेंतं वा सातिजति ।। म. (२४४)जे भिक्खू रन्नारक्खियं अत्तीकरेइ, अत्तीकरेंतं वा सातिजति ।। मू. (२४५) जे भिक्खू रन्नाक्खियं अच्चीकरेइ, अच्चीकरेंतं वा सातिजति ।। मू. (२४६) जे भिक्खू रन्नारक्खियं अत्थीकरेइ, अस्थीकरेंतं वा सातिजति ।। मू. (२४७) जे भिक्खु सव्वारक्खियं अत्तीकरेति अत्तीकरेंतं वा सातिञ्जति॥ मू. (२४८) जे भिक्खु सव्वारक्खियं अचीकरेतिअच्चीकरेंत वा सातिजति ।। मू. (२४९) जे भिक्खु सव्वारखियं अत्थीकरेति अत्थीकरेंतवा सातिजति ।। [भा.१८५४] अत्तीकरणादीसुं, रायादीणं तुजो गमो भणिओ। सोचेव निरवसेसो, गामादारक्खिमादीसुं॥ धू-जो गमो भणितो इहेव उद्दसगे आदिसुत्तेसु॥ मू. (२५०) जे भिक्खू अन्नमन्नस्स पाए आमज्जेज वा पमजेज वा, आमजंतं वा पमजंतं वा सातिजति॥ ___ मू. (२५१) जे भिक्खू अन्नमन्नस्स पाए संबाहेज वा पलिमद्देज वा संबाहेंतं वा पलिमद्देतं वा सातिजति ।। म. (२५२) जे भिक्खू अन्नमन्नस्स पाए तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा नवनीएण वा मक्खेज वा भिंलिंगेज वा मक्खेतं वा भिंलिंगेंतं वा सातिजति॥ मू. (२५३) जे भिक्खू अन्नमन्नस्स पाए लोद्धेण वा कक्केण वा उल्लोलेज वा उव्वट्टेल वा, उल्लोलेंतं वा उव्वदे॒तं वा सातिञ्जति ॥ मू. (२५४) जेभिक्खूअन्नमन्नस्सपाएसीओदग-वियडेणवाउसिणोदग-वियडे वा उच्छोलेज वा पधोएज वा, उच्छोलेंतं वा पधोएंतं वा सातिजति ।। मू. (२५५) जे भिक्खू अन्नमन्नस्स पाए फुमेजवा रएज वा, फुमेंतं वा रएंतंवा सातिञ्जति। मू. (२५६)जे भिक्खू अन्नमन्नस्स कायं आमजेज वा पमज्जेज्ज वा, आमजंतं वा पमजंतं वा सातिजति ।। मू. (२५७) जे भिक्खू अन्नमन्नस्स कार्य संबाहेज वा पलिमद्देज वा संबाहेंतं वा पलिमदें वा सातिजति ॥ मू. (२५८) जे भिक्खू अन्नमन्नस्स कायं तेल्लेण वा घएण वा वसाए वा नवणीएण वा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003370
Book TitleAgam Sutra Satik 34 Nishith ChhedSutra 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year2000
Total Pages1372
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 34, & agam_nishith
File Size25 MB
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