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________________ ७० प्रज्ञापनाउपाङ्गसूत्र-१-91-1-1१९१ सेकिंतंसजोगकेवलिखीणकसायवीयराचरित्तारिया?, सजोगिकेवलिखीणकसायवीयरायचरित्तारिया दुविहा पं०, तं०-पढमसमयसजोगिकेवलिखीणकसायवीयरायचरित्तारियाय अपढमसमयजोगिकेवलिखीणकसायवीयरायचरित्तारिया य, अहवा चरिमसमयसजोगिकेवलिखीणकसायवीयरायचरित्तारियाय अचरिमसमयजोगिकेवलिखीणकसायवीयरायचरित्तारिया य, सेत्तं सजोगिकेवलिखीणकसायवीयरायचरित्तारिया।। से किं तं अजोगिकेवलिखीणकसायवीयरायचरित्तारिया ?,दुविहा पं०, तं०-पढमसमयअजोगिकेवलिखीणकसायवीयराय-चरित्तारियायअपढमसमयअजोगिकेवलिखीणकसायवीयरायचरित्तारिया य, अहवा चरिमसमय- अजोगिकेवलिखीणकसायवीयरायचरित्तारिया य अचरिमसमयअजोगिकेवलिखीण- कसायवीयरायचरित्तारिया य, सेत्तं अजोगिकेवलिखीणकसायवीयरायचरित्तारिया, सेत्तं केवलिखीणकसायवीयरायचरित्तारिया, सेत्तं खीणकसायवीयरायचरित्तारिया सेतं वीयरायचरित्तारिया। अहवा चरित्तारियापंचविहापं०, तं०-सामाइयअचरित्तारिया छेदोवडावणीयचरित्तारिया परिहारविसुद्धिचरित्तारिया सुहुमसंपरायचरित्तारिया अहक्खायचरित्तारिया य। से किं तं सामाइयचरित्तारिया ?, सामाइयचरित्तारिया दुविहा पं०, तं-- इत्तरियसामाइयचरित्तारिया य आवकहियसामाइयचरित्तारिया य, सेत्तं सामाइयचरित्तारिया। से किं तं छेदोवट्ठावणियचरित्तारिया ?, छेदोवट्ठावणियचरित्तारिया दुविहा पं०, तं०-साइयारछेदोवठ्ठावणियचरित्तारिया य निरइयारछेदोवट्ठावणियचरित्तारिया य, सेत्तं छेदोवट्ठावणियचरित्तारिया से किंतंपरिहारविसुद्धियचरित्तारिया?, परिहारविसुद्धियचरितारिया दुविहा पं०, तं०-निव्विस्समाणपरिहारविसुद्धियचरित्तारिया य निविट्ठकाइयपरिहारविसुद्धियचरित्तारिया य, से तं परिहारविसुद्धियचरित्तारिया। सेकिंतंसुहमसंपरायचरित्तारिया?, दुविहा पं०, संकिलिस्समाणसुहुमसंपरायचरित्तारिया विसुन्झमाणसुहुमसंपरायचरित्तारिया य, सेत्तं सुहुमसंपरायचरित्तारिया। से किंतं अहक्खायचरित्तारिया?, अहक्खायचरित्तारिया दुविहा पं०, तं०-छउत्थअहक्खायचरित्तारिया य केवलिअहक्खायचरित्तारिया य, सेत्तं अहक्खायचरित्तारिया, सेत्तं चरित्तारियं, सेतं अणिविपत्तारिया, सेत्तं कम्मभूमगा, सेत्तं गम्भवक्कंतिया, सेत्तं मणुस्सा। वृ. ‘से किं तं' इत्यादि सुगम, यावद् ‘अहवा चरित्तारिया पंचविहा पन्नत्ता तंजहासामाइयअचरित्तारिया' इत्यादि, नवरं पढमसमय० अपढमसमय०इति, ये तेषामेवोशपशान्तकषायत्वादीनां विशेषाणां प्रथमे समये वर्तन्ते ते प्रथमसमयाः ततो द्वितायादिषु समयेषु वर्तमाना अप्रथमसमयाः, तथा 'चरिमसमय० अचरिमसमय०' इति ये तेषामेवोपशान्तकषायत्वादीनां विशेषाणामन्त्यसमये वर्तन्ते ते चरमसमयः, ये ततोऽर्वागू द्विचरमत्रिचरमादिषु समयेषु वर्तन्ते ते अचरमाः। सामायिकादिचारित्राणां स्वरूपमिदम्-समोरागद्वेषरहितत्वाद् आयो गमनं समायः एष चान्यासामपि साधुक्रियाणामुपलक्षणं, सर्वासामपि साधुक्रियाणां रागद्वेषरहितत्वात्, समायेन निर्वृत्तं समायेभवंवा सामायिकं, यद्वा समानां-ज्ञानदर्सनचारित्राणामायो-लाभः समायः समाय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003349
Book TitleAgam Sutra Satik 15 Pragnapana UpangSutra 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year2000
Total Pages664
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 15, & agam_pragyapana
File Size14 MB
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