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________________ पदं-१५, उद्देशकः-२, द्वारं - २७ नत्थि, केवइया दबिंदियाअतीता?, नस्थि, केवइया बद्धलगा?, नत्थि, केवइया पुरेक्खडा?, असंखिज्जा, एवं सब्वट्ठसिद्धगदेवत्तेवि, एवं जाव पंचिंदियतिरिक्खजोणिया सव्वट्ठसिद्धगदेवत्ते भाणियब्वं, नवरं वणस्सइकाइयाणं विजयवेजयंतजयंतअपराजितदेवत्ते सब्बठ्ठसिद्धगदेवते य पुरेक्खडा अनंता, सव्येसि मणूससव्वदृसिद्धगवजाणंसट्टाणे बद्धलगाअसंखेजा, परहाणेबद्धेल्लगा नस्थि, वणस्सइकाइयाणं बद्धेल्लगा अनंता, मणूसाणं नेरइयत्ते अतीता बद्धेल्लगा नत्थि पुरेक्खडा अनंता, एवंजाव गेवेजगदेवत्ते, नवरं सट्टाणे अतीता अनंता बद्धलगा सिय संखेज्जा सियअसंखेजा पुरेक्खडा अनंता, मणूसाणं भंते ! विजयवेजयंतजयंतअपराजितदेवत्ते केवइया दबिंदिया अतीता?, संखेजा, केवइया बद्धलगा?, नत्थि, केवइया पुरेक्खडा?, सिय संखेजा सिय असंखेजा, एवं सव्वट्ठसिद्धगदेवत्ते अतीता नस्थि बद्धलगा नत्थि पुरेक्खडा असंखेजा, एवं जाव गेवेजगदेवाणं, विजयवेजंयतजयंतअपराजितदेवाणं भंते ! नेरइयत्ते केवइया दबिंदिया अतीता?, गो०! अनंता, केवइया बद्धलगा?, नत्थि, केवइया पुरेक्खडा ?, नथि, एवं जाव जोइसियत्तेवि, नवरं मणूसत्ते अतीता अनंता, केवइया बद्धलगा?, नस्थि, पुरेक्खडा असंखिज्जा, एवं जाव गेवेजगदेवते सहाणे नत्थि बद्धलगा नस्थि पुरेक्खडा असंखेजा, सव्वसिद्धगदेवाणं भंते ! नेरइयत्ते केवतिया दबिंदिया अतीता?, गो० ! अनंता, केवतिया बद्धेल्लगा?, नत्थि, केवतिया पुरेक्खडा?, नस्थि, एवं मणूसवजं ताव गेवेञ्जगदेवत्ते, मणुसत्ते अतीताअनंता, बद्धेल्लगा नस्थि, पुरेक्खडा संखेजा, विजयवेजयंतजयंतअपराजितदेवत्ते केवइया दबिंदिया अतीता?, संखेजा, केवइया बद्धलगा?, नस्थि, केवइया पुरेक्खडा ?, नत्थि, सब्वट्ठसिद्धगदेवाणंभंते! सव्वसिद्धगदेवत्ते केवइया दबिंदिया अतीता?, नत्यि केवइया बद्धेलगा?, संखिजा, केवइया पुरेक्खडा ?, नस्थि, दारं ११॥ कति णं भंते ! भाविंदिया, पं०?, गो० ! पंच माबिंदिया, पं० २०-सोतिदिए जाव फासिदिए, नेरइयाणंभंते! कति भाविंदिया पं०?, गो०!पंच भाविंदिया पं०, तं०-सोतिदिते जाव फासिंदिते, एवं जस्स जइ इंदिया तस्स तइ भाणितव्वा, जाव वेमाणियाणं, एगमेगस्स णं भंते ! नेरइयस्स केवइया भाविदिया अतीता?, गो०! अनंता, केवइया बद्धेल्लगा?,पंच, केवइया पुरेखडा?, पंच वा दस वा एक्कारस वा संखेजा वा असंखेजा वा अनंता वा, एवं जाव थणियकुमारस्सवि, एवं पुढविकाइयआउकाइयवणस्सइकाइयस्सवि, बेइंदियतेइंदियचउरिदियस्सवि, तेउकाइयवाउकाइयस्सविएवं चेव, नवरं पुरेक्खडाछ वा सत्त वा संखञ्जा वा असंखेजा वा अनंतावा, पंचिंदियतिरिक्खजोणियस्स जावईसाणस्स जहाअसुरकुमारस्स, नवरंमणूसस्स पुरेक्खडा कस्सइ अस्थि नस्थित्ति भाणियव्यं, सणंकुमार जाव गेवेजगस्स जहा नेरइयस्स, विजयवेजयंतजयंतअपराजितदेवस्स अतीता अनंता, बद्धलगा पंच, पुरेक्खडा पंच वा दस वा पन्नरस वा संखेजा वा, सव्वट्ठसिद्धगदेवस्स अतीता अनंता, बद्धेल्लगा पंच, केवइया पुरेक्खडा?, पंच। नेरइयाणं भंते ! केवइया भाविंदिया अतीता?, गो० ! अनंता, केवइया बद्धलगा?, असंखेञ्जा, केवइया पुरेक्खडा?, अनंता एवं जहा दबिंदिएसु पोहत्तेणं दंडतो भणितो तहा भाविदिएसुवि पोहत्तेणं दंडतो भाणियव्वो, नवरं वणस्सइकाइयाणं बद्धेल्लगा अनंता, एगमेगस्स Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003349
Book TitleAgam Sutra Satik 15 Pragnapana UpangSutra 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year2000
Total Pages664
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 15, & agam_pragyapana
File Size14 MB
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