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________________ पदं - १०, उद्देशक:-, द्वारं एवं जाव आयते, परिमंडले णं भंते! संठाणे अनंतपएसिए किं संखेज्जपएसोगाढे असंखेज्जपएसोगाढे अनंतपएसीगाढे ?, गो० ! सिय संखेज्जपएसोगाढे सिय असंखेज्जपएसो गाढे नो अनंतपएसोगाढे, एवं जाव आयते । परिमंडले णं भंते! संठाणे संखेज्जपएसिए संखेज्जपएसोगाढे किं चरमे अचरमे चरमाई अचरमाई चरमंतपएसा अचरमंतपएसा ?, गो० ! परिमंडले णं संठाणे संखेनपएसिए संखेज्जपएसोगाढे नो चरमे नो अचरमे नो चरमाइं नो अचरमाई नो चरमंतपएसानो अचरमंतपएसा, नियमं अचरमं चरमाणि य चरमंतपएसा य अचरमंतपसा य, एवं जाव आयते, २५३ परिमंडले णं भंते! संठाणे असंखेज्जपएसिए संखेजपएसोगाढे किं चरमे० पुच्छा, गो० ! असंखेजपएसिए संखेज्जप- एसोगाढे जहा संखेज्जपएसिए, एवं जाव आयते, परिमंडले णं भंते! संठाणे असंखेज्जपएसिए असंखेज्जपएसोगाढे किं चरमे पुच्छा, गो० ! असंखिज्जपएसिए असंखित्रपएसीगाढे नो चरमे जहा संखेज्जपदेशोगाढे एवं जाव आयते, परिमंडले णं भंते! संठाणे अनंतपएसिए संखिज्जपएसोगाढे किं चरमे० पुच्छा, गो० ! तहेव जाव आयते, अणनतपएसिए असंखेज्ज एसोगाढे जहा संखेजपए- सोगाढे, एवं जाव आयते । परिमंडलस्स णं भंते! संठाणस्स संखेजपएसियस्स संखेज्जपएसोगाढस्स अचरिमस्स य चरिमाण य चरमंतपदेसाण य अचरमंतपएसाण य दव्वट्टयाए पएसट्टयाए दव्वट्ठपएसटठयाए कयरे २ हिंतो अ० ब० तु० वि० ?, गो० ! सव्वत्थोचे परिमंडलस्स संठाणस्स संखेजपएसियस्स संखेजपएसोगाढस्स दव्वट्टयाए एगे अचरिमे चरिमाई संखेज्जगुणाई अचरमं चरमाणि य दोऽवि विसेसाहियातिं पदेसट्टयाए सव्वत्थोवा परिमंडलस्स संठाणस्स संखिजपएसियस्स संखेजपएसोगाढस्स चरमंतपएसा अचरमंतपएसा संखेज्जगुणा चरमंतपएसा य अचरमंतपएसा य दोऽवि विसेसाहिया दव्वट्टपएसट्टयाए सव्वत्थोवे परिमंडलस्स संठाणस्स संखेज्जपएसियस्स संखेज्जपएसोगाढस्स दव्वट्टयाए एगे अचरिमे चरिमाई संखेज्जगुणातिं अचरमं च चरमाणि य दोवि विसेसाहियातिं चरमंतपएसा संखेजगुणा अचरिमंतपएसा संखेज्जगुणा चरिमंतपएसा य अचरमंतपएसा य दोवि विसेसाहिया एवं वट्टतंसचउरंसायएसुवि जोएयव्वं । परिमंडलस्स णं भंते! संठाणस्स असंखेज्जपएसियस्स संखेज्जपएसोगाढस्स अचरमस्स चरमाण य चरमंतपसाण य अचरमंतपएसाण य दव्वट्टयाए पएसट्टयाए दव्वट्ठपएसट्टयाए कयरे २ हिंतो अ० ब० तु० वि० ?, गो० ! सव्वत्थोवे परिमंडलस्स संठाणस्स असंखेजपएसि अस्स संखेजपएसोगाढस्स दव्ययाए एगे अचरमे चरमातिं संखेज्जगुणातिं, अचरमं च चरमाणि य दोवि विसेसाहियातिं पदेसट्टयाते सव्वत्थोवा परिमंडलसंठाणस्स असंखेज एसियस्स संखेजपएसोगाढस्स चरमंतपएसा अचरमंतपएसा संखिज्जगुणा चरमंतपएसा य अचरमंतपएसा य दोवि विसेसाहिया दव्वट्टयाएसट्टयाए सव्वत्थोवे परिमंडलस्स संठाणस्स असंखेज्जपएसियस्स संखेजपएसोगाढस्स दव्वट्टयाए एगे अचरिमे चरमातिं संखेजगुणाति अचरमं च चरमाणि य दोवि विसेसाहियातिं चरमंतपएसा संखेज्जगुणा अचरमंतपएसा संखेज्जगुणा चरमंतपएसा य अचरमंतपएसा य दोवि विसेसाहिया, एवं जाव यआते । परिमंडलस्स णं भंते! संठाणस्स असंखेज्जपएसियस्स असंखेज्जपएसोगाढस्स अचरमस्स चरमाण य चरमंतपएसाण य अचरमंतपएसाण य दव्वट्टयाए पएसट्टयाए दव्वट्ठपएसट्टयाए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003349
Book TitleAgam Sutra Satik 15 Pragnapana UpangSutra 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year2000
Total Pages664
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 15, & agam_pragyapana
File Size14 MB
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