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________________ शतकं-२०, वर्गः-, उद्देशकः-५ पूर्वोक्तानांपञ्चचत्वारिंशदशीत्यशीतिषडुत्तरविंशतिसङ्ख्यानां मङ्गकानांमीलनाद्देशतेएकत्रिंशदुत्तरे भवत इति । 'नवपएसियस्से त्यादि, इह पञ्चवर्णत्वे द्वात्रिंशतो भङ्गकानामन्त्य एवन भवति शेष तुपूर्वोक्तानुसारेण भावनीयमिति ॥ मू. (७८७) बायरपरिणएणंभंते ! अनंतपएसिएखंधे कतिवन्ने एवंजहा अट्ठारसमसए जाव सय अट्ठफासे पन्नत्ते वन्नगंधरसा जहा दसपएसियस। जइ चउफासे सव्वे कक्खडे सच्चे गरुए सव्वे सीए सव्वे निद्धे १ सब्वे कक्खडे सचे गरुए सव्वे सीए सब्वे लुक्खे २ सब्वे कक्खडे सव्वे गरुए सव्वे उसिणे सव्वे निद्धे ३ सव्वे कक्खडे सब्वे गरिए सव्वे सीए सव्वे लुक्खे ४ सव्वे लक्खडे सव्वे लहुए सव्वे सीए सव्वे लुक्खे सब्वे कक्खडे सव्वे लहुए सब्वे सीए सब्बे लुक्खे ६ सव्वे कक्खडे सव्वे लहुए सव्वे उसिणे सव्वै निद्धे ७ सव्वे कक्खडे सव्वे लहुए सव्वे उसिणे सब्बे लुक्खे ८ सब्वे मउए सब्वे गरुए सव्वे सीए सव्वे निद्धे ९ सव्वे मउए सव्वे गरुए सब्बे सीए सव्वे लुक्खे १०॥ सब्वे मउए सब्वे गरुए सव्वे उसिणे सव्वे निद्धे ११ सव्वे मउए सव्वे गरुए सव्वे उसिणे सब्बे लुक्खे १२ सब्बे मउए सबे लहुए सव्वे सीए सव्वे निद्धे १३ सब्वे मउए सव्वे लहुए सव्वे सीए सव्वे लुक्खे १४ सब्बे मउए सब्वे लहुए सव्वे उसिणे सव्वे निद्धे १५ सव्वे मउएसव्वेलहुए सव्वे उसिणे सब्बे लुक्खे १६एए सोलस भंगा। . जइ पंचफासे सव्चे कक्खडे सव्वे गरुए सव्वे सीए देसे निद्धे देसे लुस्खे १ सब्वे कक्खडे सव्वे गरुए सव्वे सीए देसे निद्धे देसा लुक्खा २ सव्वे कक्खडे सव्वे गरुए सब्वे सीए देसा निद्धा देसे लुक्खे ३ सव्वे कक्खडे सव्वे गरुए सब्बे सीए देसा निद्धा देसा लुक्खा४ सब्बे कक्खडे सव्वे गरुए सव्वे उसिणे देसे निद्धे देसे लुक्खे ४ सव्वे कक्खडे सव्वे लहुए सव्वे सीए देसे निद्धे देसे लुक्खे४ सव्वे कक्खडे सव्वेलहुए सब्बेउसिणे देसे निद्धे देसेलुक्खे। एवं एएकक्खडेणं सोलस भंगा। सव्वे मउए सब्वे गरुए सव्वे सीए देसे निद्धे देसे लुक्खे४ एवं मउएणविसोलसभंगा एवं बत्तीसं भंगा। सब्वे कक्खडे सव्वे गरुए सव्वे निद्धे देसे सीए देसे उसिणे ४ सव्वे कक्खडे सव्वे गरुए सब्वे लुस्खे देसे सीए देसे उसिणे ४ एए बत्तीसंभंगा, सब्वे कक्खडे सव्वे सीए सव्वे निद्धे देसे गरुए देसे लहुए एत्थवि बत्तीसंभंगा ४, सब्बे गरुए सब्वे सीए सव्वे निद्धे देसे कक्खडे देसे मउए एत्थवि बत्तीसं भंगा, एवं सब्वे ते पंचफास अट्ठावीसं भंगसयं भवंति। जइ छफासे सव्वे कक्खडे सव्वे गरुए देसे सीए देसे उसिणे देसे निद्धे देसे लुक्खे १ सव्वे कक्खडे सब्बे गरुए देसे सीए देसे उसिणे देसे निद्दे देसा लुक्खा २ एवं जाव सब्वे कक्खडे सव्वे गरुए देसा सीया देसा उसिणा देसा निद्धा देसा लुक्खा १६एए सोलस भंगा। सव्वे कक्खडे सव्वे लहुए देसे सीए देसे उसिणे देसे निद्धे देसे लुक्खे एत्थवि सोलस भंगा, सब्वे मउए सव्वे लहुए देसे सीए देसे उसिणे देसे निद्धे देसे लुक्खे एत्थवि सोलस भंगा, एए चउसद्धिं भंगा, सव्वे कक्खडे सव्वे निद्धे देसे गरुए देसे लहुए देसे निद्धे देसे लुक्खे एत्थवि चउसद्धिं भंगा, सव्वे कक्खडे सव्वे निद्धे देसे गरुए देसे लहुए देसे सीए देसे उसिणे १ जाव सव्वे मउए सव्वे लुक्खे देसा गरुया देसा लहुया देसा सीया देसा उसिणा १६ एए चउसढि भंगा। सव्वे गरुए सव्वे सीए देसे कक्खडे देसे मउए देसे निद्धे देसेलुखे एवंजाव सब्बे लहुए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003339
Book TitleAgam Sutra Satik 05 Bhagavati AngSutra 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year2000
Total Pages1096
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size23 MB
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