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________________ २७४ भगवतीअङ्गसूत्रं (२) १९/-/३/७६३ मू. (७६३)एयस्सणंभंते! पुढविकाइयस्सआउक्काइयस्सतेऊ वाऊ वणस्सइकाइयस्स कयरे काये सव्वसुहमे कयरे काए सब्बसुहुमतराए ?, गोयमा ! वणस्सइकाइए सव्यसुहमे वणस्सइकाइएसव्वसुहुमतराए २, एयस्सणं भंते ! पुढविकाइयस्स आउक्काइतेउ० वाउकाइयस्स कयरे काये सव्वसुहमे कयरे काये सव्वसुहुमतराए?, गोयमा ! वाउकाए सव्वसुहुमे वाउचाये सव्यसुहुमतराए। एयस्स णं भंते ! पुढविकाइयस आउक्काइयस्स तेउकाइयस्स कयरे काये सव्वसुहमे कयरे काए सव्वसुहुमतराए?, गोयमा! तेउक्काएसब्बसुहमे तेउकाएसव्वसुहुमतराए ३, एयस्स णं भंते ! पुढविकाइयस्स आउकाइयस्स कयरे काए सव्वसुहुमे कयरे काये सव्वसुहुमतराए?, गोयमा! आउक्काए सव्वसुहमे आउकाए सब्बसुहुमतराए ४।। एयस्स णं भंते ! पुढविकाइयस्स आउ० तेउ० वाउ० वणस्सइकाइयस्स कयरे काये सब्बबादरे कयरे काये सव्वबादरतराए ?, गोयमा ! वणस्सइकाये सव्वबादरे वणस्सइकाये सव्वबादरतराए १, एयस्स णं भंते ! पुढविकाइयस्स आउकाइ० तेउक्काइय० वाउक्काइयस्स कयरे काए सव्वबादरे कयरे काए सव्वबादरतराए?, गोयमा ! पुढविकाएसव्वबादरे पुढविक्काए सव्वबादरतराए २ . एयस्स णं भंते ! आउक्काइयस्स तेऊकायस्स वाउकाइयस्स कयरे काए सव्वबादरे कयरे काए सव्वबादरतराए?, गोयमा! आउक्काए सव्वबादरे आउक्काए सव्वबादरतराए ३, एयस्स णं भंते ! तेउकाइयस्स वाउक्काइयस्स कयरे काए सव्वबादरे कयरे काए सव्वबादरतराए?, गोयमा ! तेउक्काए सव्वबादरे तेउक्काए सव्वबादरतराए ४॥ __ केमहालए णं भंते ! पुढविसरीरे पन्नत्ते?, गोयमा ! अनंताणं सुहुमवणस्सइकाइयाणं जावइया सरीरा से एगे सुहुमवाउसरीरे असंखेजाणंसुहुमवाउसरीराणंजावतिया सरीरा से एगे सुहुमतेऊसरीरे, असंखेजाणं सुहुमतेऊकाइयसरीराणंजावतिया सरीरासे एगे सुहमे आऊसरीरे, असंखेजाणं सुहुमआउक्काइयसरीराणं जावइया सरीरा से एगे सुहुमे पुढविसरीरे, असंखेजाणं सुहुमपुढविकाइयसरीराणं जावइया सरीरासे। एगे बादरवाउसरीरे, असं० बादरवाउक्काइयाणं जावइया सरी० से एगे बादरतेऊसरीरे, असंखैजाणं बादरतेउकाइयाणं जावया सरीरा से एगे बादरआउसरीरे, असंखेज्जाणं बादरआउ० जावतिया सरीरासे एगे बादरपुढविसरीरे, एमहालए णं गोयमा ! पुढविसरीरे पन्नत्ते ।। . वृ. 'एयस्से'त्यादि, 'कयरे काए'त्ति कतरो जीवनिकायः 'सव्वसुहुमे'त्ति सर्वथा सूक्ष्मः सर्वसूक्ष्मः,अयंच चक्षुरग्राह्यतामात्रेण पदार्थान्तरमनपेक्ष्यापि स्याद्यथा सूक्ष्मोवायुः सूक्ष्मं मन इत्यत आह-'सव्वसुहुमतराए'त्ति सर्वेषां मध्येऽतिशयेन सूक्ष्मतरः स एव सर्वसूक्ष्मतरक इति सूक्ष्मविपरीतोबादर इतिसूक्ष्मत्वनिरूपणानन्तरं पृथिव्यादीनामेवबादरत्वनिरूपणायाह-'एयस्स ण'मित्यादि। पूर्वोक्तमेवार्थप्रकारान्तरेणाह- 'केमहालएण'मित्यादि, अनंताणं सुहुमवणस्सइकाइयाणं जावइया सरीरा से एगे सुहुमवाउसरीरे'त्ति, इह यावद्रहणेनासङ्ख्यातानि शरीराणि ग्राह्याणि अनन्तानामपिवनस्पतीनामेकाद्सङ्खयेयान्तशरीरत्वाद् अनन्तानांचतच्छरीराणामभावात्प्राक् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003339
Book TitleAgam Sutra Satik 05 Bhagavati AngSutra 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year2000
Total Pages1096
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size23 MB
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