SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 485
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती अङ्गसूत्रं ९/-/३२/४५३ रयण० वालुय० पंकप्पभाए य होजा जाव अहवा रयण० वालुय० अहेसत्तमाए होजा ४ अहवा रयण० पंकप्पभाए घूमाए होज्जा एवं रवणप्पभं अमुयंतेसु जहा तिन्हं तियासंजोगो भणिओ भणिओ तहा भाणियव्वं जाव अहवा रयण० तमाए य अहेसत्तमाए य होज्जा १५ । ४८२ अहवा रयणप्पभाए सक्करप्पभाए वालुय० पंकप्पभाए य होज्जा अहवा रयणप्पभाए सकरप्पभाए वालुय० धूमप्पभाए य होज्जा जाव अहवा रयणप्पभाए सक्करम्पभाए वालुय० अहेसत्तमाए य होजा ४ | अहवा रयण० सक्कर० पंक० धूमप्पभाए य होज्जा एवं रयणप्पभं अमुयंतेसु जहा चउण्हे चउक्कसंजोगो तहा भाणियव्वं जाव अहवा रयण० घूम० तमाए अहेसत्तमाए होज्जा अहवा रयण० सक्कर० वालुय० पंक० धूमप्पभाए य होज्जा १ अहवा रयणप्पभाए जाव पंक० तमाए य होज्जा २ अहवा रयण० जाव पंक० अहेसत्माए य होज्जा ३ अहवा रयण० सक्कर० वालुय० घूम० तमाए य होजा ४ । एवं रयणप्पभं अमुयंतेसु जहा पंचण्हं पञ्चकसंजोगो तहा भाणियव्वं जाव अहवा रयण० पंकप्पभा० जाव अहेसत्तमाए होजा अहवा रयण० सक्कर० जाव घूमप्पभाए पमाए य होजा १ अहवा रयण० जाव घूम० अहेसत्तमाए य होज्जा २ अहवा रयण० सकर० जाव पंक० तमाए य असत्तमाए य होज्जा ३ अहवा रयण० सक्कर० वालुय० घूमप्पभाए तमाए अहेसत्तमाए होजा ४ अहवा रयण० सक्कर० पंक० जाव अहेसत्तमाए य होज्जा ५ अहवा रयण० चालुय० जाव असत्तमाए होज्जा ६ अहवा रयणप्पभाए य सक्कर० जाव अहेसत्तमाए य होज्जा ७ ॥ एयस्स णं भंते ! रयणप्पभापुढविनेरइयपवेसणगस्स सक्करप्पभापुढवि० जाव अहेसत्तमापुढविनेरइयपवेसगगस्स य कयरे २ जाव विसेसाहिया वा ?, गंगेया ! सव्वत्थोवे असत्तमापुढविनेरइयपवेसणए तमापुढविनेरइयपवेसणए असंखेज्जगुणे एवं पडिलोमगं जाव रयणप्पभापुढविनेरइयवेसणए असंखेज्जगुणे ॥ वृ. 'उक्कोसेण 'मित्यादि, उत्कर्षा- उत्कृष्टपदिनो येनोत्कर्षत उत्पद्यन्ते 'ते सब्वेवि' त्ति ये उत्कृष्टपदिनस्ते सर्वेऽपि रलप्रभायां भवेयुः सद्भामिनां तत्स्थानानां च बहुत्वात् । इह प्रक्रमे द्विकयोगे षड् भङ्गका स्त्रिकयोगे पञ्चदश चतुष्कसंयोगे विंशति । पञ्चकसंयोगे पञ्चदश षङ्योगे षट् सप्तकयोगे त्वेक इति । अथ रत्नप्रभादिष्वेव नारकप्रवेशनकस्याल्पत्वादिनिरूपणायाह- 'एयरस ण' मित्यादि, तत्र सर्वस्तोकं सप्तमपृथिवीनारकप्रवेशनकं, तद्गामिनां शेषापक्षया स्तोकत्वात्, ततः षष्ठयामसङ्ख्यातगुणं, तद्गामिनामसङ्ख्यातगुणत्वात् एवमुत्तरत्रापि । अथ तिर्यग्योनिकप्रवेशनकप्ररूपणायाह मू. (४५४) तिरिक्खजोणियपवेसणए णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते ?, गंगेया ! पंचविहे पत्ते, तंजा - एगिंदियतिरिक्खजोणियपवेसणए जाव पंचेदियतिरिक्खजोणियपवेसणए । एगे भंते! तिरिक्खजोणिए तिरिक्खजोगियपवेसणएणं पविसमाणे किं एगिंदिएसु होजा जाव पंचिंदिएसु होज्जा ?, गंगेया! एगिंदिएसु वा होज्जा जाव पंचिंदिएसु वा होज्जा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003339
Book TitleAgam Sutra Satik 05 Bhagavati AngSutra 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year2000
Total Pages1096
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy