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भगवतीअङ्गसूत्रं (२) ३४/१/२/१०३५ कर्म प्रकुर्दन्ति, विषमस्थितिकसम्बन्धि त्वन्तिममङ्गद्वयमनन्तोपपन्नकानां न संभवत्यनन्तरोपपन्नकत्व विषमस्थिरतेरभावात् । एतच्च गमनिकामात्रमेवेति,
-: शतकं-३४/१ उद्देशकाः-२ समाप्तम् :
-शतकं-३४/१ उद्देशकः-३:मू. (१०३६) कइविहाणं भंते ! परंपरोववन्नगा एगिंदिया पन्नत्ता?, गोयमा! पंचविहा परंपरोवत्रगा एगिदिया प० तं०-पुढविक्काइया भेदो चउक्कओ जाववणस्सइकाइयत्ति।
परपरोववन्नगअपज्जत्तसुहुमपुढविकाइएणंभंते! इमीसे रयणप्पभाएपुढवीए पुरच्छिमिल्ले चरिमंते समोहए २ जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए जाव पच्चच्छिमिल्ले चरिमंते अपञ्जत्तसुहमपुढविकाइयत्ताए उवव० एवंएएणं अभिलावेणंजहेव पढमोउद्देसओजावलोगचरिमंतोत्ति
कहिन्नं भंते! परंपरोववन्नगवायरपुढविकाइयाणं ठाणा प०?, गोयमा! सट्ठाणेणं अट्ठसु पुढवीसु एवं एएणं अभिलावेणं जहा पढमे उद्देसए जाव तुलद्वितीयत्ति । सेवं भंते ! २ ति।
-शतकं-३४/१ उद्देशकाः-४-११:मू. (१०३७) एवं सेसावि अट्ट उदेसगा जाव अचरमोत्ति, नवरं अनंतरा अनंतरसरिसा परंपरा परंपरसरिसा चरमा य अचरमा य एवं चेव, एवं एते एक्कारस उद्देसगा।
-शतक-३४, द्वितीयं शतकं-उद्देशकाः-१-११:मू. (१०३८) कइविहाणंभंते! कण्हलेस्साएगिदियाप०?, गोयमा! पंचविहा कण्हलेस्सा एगिदिया प० भेदो चउक्कओ जहा कण्हलेस्सएगिदियसए जाव वणस्सइकाइयत्ति।
कण्हलेस्सअपञ्जत्तासुहुमपुढविकाइएणंभंते! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीएपुरच्छिमिल्ले एवं एएणं अभिलावेणं जहेव ओहिउद्देसओ जाव लोगचरिमंतेत्ति सव्वत्थ कण्हलेस्सेसु चेव उववाएयव्यो।
कहिन्नं भंते! कण्हलेस्सअपजत्तबायरपुढविकाइयाणं ठाणा प० एवं एएणं अभिलावेणं जहा ओहिउद्देसओ जाव तुल्लट्टिइयत्ति । सेवं भते! २त्ति । एवं एएणं अभिलावेणं जहेव पढमं सेढिसयंतहेव एक्कारस उद्देसगा भाणियव्वा ।
-शतक-३४ तृतीयं शतक :मू. (१०३९) एवं नीललेस्सेहिवि |
-शतकं-३४-चतुर्थ शतकं:मू. (१०४०) काउलेस्सेहिवि सयं, एवं चेव ।.
-शतकं-३४-पञ्चमंशतकं:मू. (१०४१) भव सिद्धियएहिवि सयं ।।
-शतकं-३४-षष्ठंशतकं:मू. (१०४२) कइविहाणं भंते ! अनंतरोववन्ना कण्हलेस्सा भवसिद्धिया एगिदिया प० जहेवअनंतरोववन्नउद्देसओ ओहिओतहेव।कइविहाणंभंते! परंपरोववन्ना कण्हलेस्सभवसिद्धिया एगिदिया प०?, गोयमा! पंचविहा परंपरोववनगा कण्हलेसभवसिद्धिएयगिंदिया पं० ओहिओ भेदो चउक्कओ जाव वणस्सइकाइयत्ति।
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