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नन्दी-चूलिकासूत्रं गहणमागच्छंति नो संखिज्जसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छति असंखिज्जासमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति, से तं पडिबोहगदिढ़तेणं। । __ से कितं मल्लगदिढ़तेणं?, मल्लगदिट्ठतेणं से जहानामए केइ पुरिसे आवागसीसाओ मल्लगं गहाय तत्थेगं उदगबिंदु पक्खेविज्जा, से नवे, अन्नेऽवि, पक्खित्ते सेऽवि नवे, एवं पक्खिप्पमाणेसु पक्खिप्पमाणेसु होही से उदगबिंदू जे णं तं मल्लगं रावेहिइत्ति, होही से उदगबिंदू जे णं तंसि मल्लगंसि ठाहिति होही से उदगबिंदू जेणं तं मल्लगं भरिहिति होही से उदगबिंदू जे णं तं मल्लगं पवाहेहिति, एवामेव पक्खिप्पमाणेहिं पक्खिप्पमाणेहिं अनंतेहिं पुग्गलेहिं जाहे तंवंजणं पूरिअं होइ ताहे हुंति केरइ, नो चेवणं जाणइ केविएस सद्दाइ?, तओईहं पविसइ तओ जाणइ अमुगे एस सद्दाइ, तआं अवायां पविसइ, तओ से उवगयं हवइ, तओणं धारणं पविसइ, तओ णं धारेइ संखिज्जवा कालं असंखिज्जं वा कालं।
से जहानामए केइ पुरिसे अव्वत्तं सदं सुणिज्जा तेणं सद्दोत्ति उग्गहिए, नो चेवणं जाणइ के वेस सद्दाइ तओईहं पविसइ तओ जाणइ अमुगे एस सद्दे तओणं अवायं पविसइ तओ से उवगयं हवइ तओ धारणं पविसइ तओ णं धारेइ संखेज्जं वा कालं असंखेज्जवा कालं।
से जहानामए केई पुरिसे अव्वत्तंरूवं पासिज्जा तेणं रूवत्ति उग्गहिए नो चेवणं जाणइ के वेस रूवत्ति तओ ईहं पविसइ तओ जाणइ अमुगे एस रूवेति तओ अवायं पविसइ तओ से उवगयं हवइ तओ धारणं पविसइ तओ णं धारेइ संखेज्जं वा कालं असंखिजवा कालं।
से जहानामए केई पुरिसे अव्वत्तं गंधं अग्घाइज्जा तेणं गंधत्ति उग्गहिए नो चेवणं जाणइ के वेस गंधेत्ति तओ ईहं पविसइ तओ जाणइ अमुगे एस गंधे तओ अवायं पविसइ तओ से उवगयं हवइ तओ धारणं पविसइ तओ णं धारेइ संखेज्जंवा कालं असंखेज्जंवा कालं।
से जहानामए केई पुरिसे अव्वत्तं रसं आसाइज्जा तेणं रसोत्ति उग्गहिए नो चेवणं जाणइ के वेस रसेत्ति तओ ईहं पविसइ तओ जाणइ अमुगे एस रसे तओ अवायं पविसइ तओ से उवगयं हवइ तओ धारणं पविसइ, तओ णं धारेइ संखिज्जं वा कालं असंखिजज्जजंवा कालं।
से जहानामए केई पुरिसे अव्वत्तं फासं पडिसंवेइज्जा तेणं फासेत्ति उग्गहिए नो चेवणं जाणइ के वेस फासओत्ति तओ ईहं पविसइ तओ जाणइ अमुगे एस फासे तओ अवायं पविसइ तओ से उगवयं हवइ तओ धारणं पविसइ तओणं धारेइ संखेज्जंवा कालं असंखेजं वा कालं।
से जहानामए केई पुरिसे अव्वत्तं सुमिणं पासिज्जा तेणं सुमिणोत्ति उग्गहिए नो चेवणं जाणइ के वेस सुमिणेत्ति तओ ईहं पविसइ तओ जाणइ अमगे एस समिणे तओ अवायं पविसइ तओ से उवगयं हवइ तओ धारणं पविसइ तओ धारेइ संखेज्जं वा कालं असंखेज्जंवा कालं।
से तंमल्लगदिलुतेणं॥
वृ.एवं अट्ठावीसे'त्यादि, 'एवम्' उक्तेन प्रकारेणाष्टाविंशतिविधस्य, कथमष्टाविंशतिविध-- तेति, उच्यते, चतुर्द्धा व्यञ्जनावग्रहः षोढा अर्थावग्रह: षोढा ईहा षड्विधोऽपाय: षोढा धारणा इत्यष्टाविंशतिविधता, एवमष्टाविंशतिविधस्याभिनिबोधिकज्ञानस्य सम्बन्धी यो व्यञ्जनावग्रह: तस्य स्पष्टतरस्वरूपप्रतिज्ञापनाय प्ररूपणां करिष्यामि। कथं? इत्याह-प्रतिबोधकदृष्टान्तेन मल्लकदृष्टान्तेन च, तत्र प्रतिबोधयतीति प्रतिबोधक:
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