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________________ ६८ आवश्यक - मूलसूत्रम् - २-४ / १० आनीए सरीरचिंताए जाइ, राया भणइ-अहं किह चउत्थो पाओ ?, सा भणइ-सव्वोवि ताव चिंतेइकुतो इत्थ आगमो मोराणं ?, जइवि ताव आणितिल्लयं होज्ज तोवि ताव दिट्ठीए निरिक्खिज्जइ, सो भाइ- सच्चयं मुक्खो, राया गओ, पिउणा जिमिए सा घरं गता, रन्ना वरगा पेसिया, तीए पियामाया भणिया- देह ममंति, भण्णइय अम्हे दरिद्दाणि किह रन्नो सपरिवारस्स पूयं काहामो ? दव्वस्स से रन्नाधरे भरियं, दासी या सिक्खाविया ममं रायाणं संवाहिंती अक्खाणयं पुच्छिज्जासि जाहे राया सोउकामो, जा सामिणी राया पवट्टइ किंचि ताव अक्खाणयं कहेहि, भणइ, कहेमि, एगस्स धूया, अलंघणिज्जा य जुगवं तिन्नि वरगा आगया, दक्खिण्णेणं मातिमातपितिहि तिन्हवि दिन्ना, जनजत्ताओ आगयाओ, सा य रत्तिं अहिणा खइया मया, एगो तीए समं दड्डी, एगो अनसनं बइट्ठो, एगेन देवो आराहिओ, तेन्न संजीवणो मंतो दिन्नो, उज्जीवाविया, ते तिन्निवि उवट्ठिया, कस्स दायव्वा ?, किं सक्का एक्का दोण्हं तिण्हं वा दाउं ? तो अक्खाहत्ति, भणइ निद्दाइया सुवामि, कल्लं कहामि, तस्स अक्खाणयस्स कोउहल्लेणं बितियदिवसे तीसे चेव वारो आणत्तो, ताहे सा पुणो पुच्छर, भाइ- जेण उज्जियाविया सो पिया, जेण समं उज्जीवाविया सो भाया, जो अनसनं बइट्ठो तस्स दायव्वत्ति, साभणइ - अन्नं कहेहि, सा भणइ एगस्स राइणो सुवण्णकारा भूमिधरे मणिरयणकउज्जोया अनिग्गच्छंता अंतेउरस्स आभरणगाणि घडाविज्जंति, एगो भणइ - का उण वेला वट्टइ ?, भरती वट्ट, सो कहं जाणइ ?, जो न चंदं न सूरं पिच्छइ, तो अक्खहि, सा भाइनिदाइया, बितियदिने कहेइ-सो रत्तिअंधत्तणेण जाणइ, अन्नं अक्खाहित्ति, भणइ - एगो राया तस्स दुवे चोराउवट्ठिया, तेन मंजुसाए पक्खिविऊण समुद्दे छूढा, ते किच्चिरस्सवि उच्छल्लिया, एगेन दिट्ठा मंजूसा, गहिया, विहाडिया, मनुस्से पेच्छइ, ताहे पुच्छियाकइत्थो दिवसो छूढाणं ?, एगो भइचउत्थो दिवसो, सो कहं जाणइ ?, तहेव बीयदिने कहेइ-तस्स चाउत्थजरो तेन जाणेइ, अन्नं कहे दो सवत्तिणीओ, एक्काए रयणाणि अत्थि, सा इयरीए न विस्संभइ मा हरेज्जा, तओऽनाए जत्थ निक्खमंती पविसंती य पिच्छइ तत्थ घडए छोढूण ठवियाणि, ओलित्तो घडओ, इयरीए विरहं नाउं हरि ं रयणाणि तहेव य घडओ ओलित्तो, इयरीए नायं हरियाणित्ति, तो कहं जाणइ, उलित्तए हरिताणित्ति ?, बिए दिवसे भाइ सो कायमओ घडओ, तत्थ ताणि पडिभासंति हरिएसु नत्थि, अन्नं कहि, भाइ- एगस्स रन्नो चत्तारि पुरिसरयणाणि तं. 'नेमित्ती रहकारो सहस्सजोही तहेव विज्जो य दिन्ना चउण्ह कण्णा परिणीया नवरमेक्केण ।। - कथं ?, तस्स रनो अइसुंदरा धूया, सा केणवि विज्जाहरेण हडा, न नज्जइ कुओऽवि पिक्खिया, रन्ना भणियं - जो कण्णगं आणेइ तस्सेव सा, तओ नेमित्तिएण कहियं अमुगं दिसं नीया, रहकारेण आगासगमणो रहो कओ, तओ चत्तारिवि तं विलग्गिऊण पहाविया, अम्मि (ब्भि) ओ विज्जाहरो, सहस्सजोहिणा सो भारिओ, तेन्नवि मारिज्जतेन दारियाए सीसं छिन्नं, विज्जेण संजीवणोसहीहिं उज्जयाविया, आनीया घरं, राइणा चउण्हवि दिन्ना, दारिया भणइ-किह अहं चउण्हवि होमि ?, तो अहं अग्गिं पविसामि, जो मए समं पविसइ तस्साहं, एवं होउत्ति, तीए समं को अग्गिं पविसइ ?, कस्स दायव्वा ?, बितियदिने भणइ-निमित्तिणा निमित्तेण नायं जहा एसा न मरइत्ति तेन्न अब्भुवगयं, इयरेहिं निच्छियं, दारिया ए चिट्ठाणस्स हेट्ठा सुरंगा खाणिया, तत्थ ताणि चियगाएणुवण्णाणि कट्ठाणि For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.003329
Book TitleAgam Suttani Satikam Part 25 Aavashyaka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year2000
Total Pages356
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aavashyak
File Size19 MB
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