SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 287
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २८४ आवश्यक मूलसूत्रम्-२-६/६२ कारवणेणवि एए चेव सत्त भंगा १४, एवं अनुमोयणेणवि सत्त भंगा २१, अहवा न करेइ न कारवेइ मनसा १ अहवा न करेइन कारवेइ वचसा, २ अहवा न करेइन कारवेइ काएण ३ अहवा न करेइ न कारवेइ मणसा वयसा ४ अहवा न करेइ न कारवेइ मनसा कायेणं ५ अहवा न करेइ न कारवेइ वयसा कायसा ६ अहवा न करेइ न कारवेइ मनसा वयसा कायसा ७, एते करणकारावणेहिं सत्त भंगा ७ एवं करणानुमोयणेहिवि सत्त भंगा ७, एवं कारावणानुमोयणेहिवि सत्त भंगा, एवं करणकारावणानुमोयणेहिवि सत्त भंगा, एवेते सत्त सत्तभंगाणं एगूणपपण्णासं विगप्पा भवन्ति, एत्थ इमो एगूणपन्नासइमो विगप्पो-पाणातिवायं न करेइ न कारवेइ करेंतंपि अन्नं न समणुजाणइ मणेणं वायाए काएणंति, एस अंतिमविगप्पो पडिमापपडिवनस्स समणोवासगस्स तिविहंतिविहेणं भवतीति, एवं ताव अतीतकाले पडिक्कमंतस्स एगूणपन्ना भवन्ति, एवं पडुपन्नेवि काले संवरेंतस्स एगूनपन्ना भवन्ति, एवं अनागएवि काले पच्चक्खायंतस्स एगूनपन्नासा भवन्ति, एवमेता एगूनपन्नासा तिन्नि सीयालं सावयसयं भवति सीयालं भंगसयं जस्स विसोहीऍ होति उवलद्धं । सो खलु पच्चक्खाणे कुसलो सेसा अकुसला उ ॥१॥ एवं पुन पंचहिं अनुव्बएहिं गुणियं सत्तसयाणि पंचत्तीसाणि सावयाणं भवन्ति,-सीयालं भंगसयं गिहिचक्खाणभेयपरिमाणं । जोगत्तियकरणत्तियकालतिएणं गुणेयव्वं ॥२॥ सीयालं भंगसयं पञ्चक्खाणंमि जस्स उवलद्धं । सो खलु पच्चक्खाणे कुसलो सेसा अकुसला य ॥३॥ सीयालं भंगसयं गिहिपच्चक्खाणभेयपरिमाणं । तं च विहिणा इमेणं भवेयव्वं पयत्तेणं ॥४॥ तिन्नि तिया तिन्नि दुया तिन्निक्किक्का य हुंति जोगेसुं। तदुिइक्कं तिदुइक्कं तिदुएगं चेव करणाई ॥५॥ पढमे लब्भइ एगो सेसेसु पएसु तिय तिय तियंति । दो नव तिय दो नवगा तिगुणिय सीयाल भंग सयं ॥६॥ अहवा अनुव्वए चेव पडुच्च एक्कगादिसंजोगदुवारेण पभूयतरा भेदा निदंसिजंति, तत्रेयमेकादिसंयोगपपरिमाणपप्रदर्शनपराऽन्यकर्तुकी गाथा ॥ पंचण्हमणुवयाणं इक्कगदुगतिगचउक्कपणएहिं । पंचगदसदसपपणइक्कगे य संजोग कायव्वा । एतीए वक्खाणं-पंचण्हमणुव्वयाणं पुव्वभणियाणं “एक्कगदुगतिगचउक्कपपणएहि' चिंतिजमाणाणं 'पंचगदसदसपणगएक्कगो य संजोग णातव्वा" एक्केण चिंतिजमाणाणं पंच संजोगा कह?, पंचसु घरएसु एगेण पंचेव भवन्ति, दुगेण चिंतिजमाणाणं दस चेव, कहं ?, पढमबीयघरेण एक्को १ पढमततियघरेण २ पढमचउत्थघरेण ३ पढमपंचमघरेण ४ बितियततियघरेण ४ बीयचउत्थघरेण ६ बीयपंचमघरेण सत्तमो ७ ततियचउत्थघरेण ८ ततियपंचमघरेण ९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003329
Book TitleAgam Suttani Satikam Part 25 Aavashyaka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year2000
Total Pages356
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aavashyak
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy