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________________ १७४ आवश्यक - मूलसूत्रम् - २-४ / २६ न हराम नृपस्यार्थे, नाहं योगंधरायणः । । सोय पज्जोएण दिट्ठो, ठिओ काइयं पवोसरिउं, नायरो य कओ पिसाउत्ति, सा य कंचनमाला विभिन्नरहस्सा, वसंतमेंठेणवि चत्तारि मुत्तधडियाओ विलइयाओ धोसवती वीणा, कच्छाए बज्झतीए सक्करओ नाम मंतीए अंधलो भणइ कक्षयां बध्यमानायां यथा रसति हस्तिनी । योजनानां शतं गत्वा, प्राणत्यागं करिष्यति ।। ताहे सव्वजनसमुदओ, मज्झे उदयनो, भणइ एष प्रयाति सार्थः काञ्चनमाला वसन्तकश्चैव । भद्रवती घोषवती वासवदत्ता उदयनश्च ।। पहाविया हत्थिणी, अनलगिरी जाव संनज्झइ ताव पणवीसं जोयणाणि गयाणि संनट्ठो मग्गलग्गो, अदूरागए घडिया भग्गा, जाव तं उस्सिंधइ अन्नाणिवि पंचवीसं, एवं तिन्निवि, नगरं च अइगओ । अन्नया उज्जेनीए अग्गी उट्ठिओ, नयरं डज्झइ, अभओ पुच्छिओ, सो भणइ-विषस्य विषमौषधं अग्नेरग्निरेव, ताहे अग्गीउ अन्नो अग्गी कओ, ताहे ठिओ, तइओ वरो, एसवि अच्छउ | अन्नया उज्जेनीए असिवं उट्ठियं, अभओ पुच्छिओ भाइ अब्भिंतरियाए अत्थाणीए देवीओ विहूसियाओ एज्जंतु, जा तुभे रायालंकारविभूसिए जिनइ तं मम कहेज्जइ, तहेव कयं, राया पलोएति, सव्वा हत्ती ठायंति, सिवए राया जिओ, कहियं तव चुल्लमाउगाए, भणइ रत्तिं अवसन्ना कुंभबलिए अच्चणियं करेउ, जं भूयं उट्ठेइ तस्स मुहे कूरं छुब्भइ, तहेव कयंति, तियचउक्के अट्टालए य जाहे सा देवया सिवारूवेणं वासइ ताहे कूरं छुब्भइ, भणइ य- अहं सिवा गोपालगमायत्ति, एवं सव्वाणिवि निज्जियाणि, संती जाया, तत्थ चउत्थो वरो । ताहे अभओ चिंतेइ केच्चिरं अच्छाभो ?, जामोत्ति, भ- भट्टारगा ! वरादिज्जंतु, वरेहि पुत्ता !, भणइ - नलगिरिंभि हत्थिंमि तुब्भेहिं मिण्ठेहिं सिवाए उच्छंगे निवन्नो (अग्गिंसाहंभि) अग्गिभीरुस्स रहस्स दारुएहिं चियगा कीरउ, तत्थ पविसामि, राया विसन्नो, तुट्ठो सक्काउं विसज्जिओ, ताहे अम ओ भाइ- अहं तुब्भेहिं छलेणं आनिओ, तुम्भे दिवसओ आइच्चं दीवियं काऊण रडतं नयरमज्झेण जइ न हरामि तो अग्गिं अतीमित्ति, तं भज्जं हाय गओ, किंचि कालं रायगिहे अच्छित्ता दो गणियादारियाओ अप्पडिरूवाओ गहाय वाणियगवेसेण उज्जेनीए रायमग्गोगाढं आवारिं गेण्हइ, अन्नया दिट्ठाउ पज्जोएण, ताहिं विसविलासाहिं दिट्ठीहिं निब्भाइओ अंजली य से कया, अइयओ नियगभवणं, दूर्ती पेसेइ, ताहिं परिकुवियाहिं धाडिया, भणइ-राया न होहित्ति, वीयदिवसे सणियगं आरुसियाउ, तइयदिवसे भणिया-सत्तमे दिवसे देवकुले अम्ह देवजन्नगो तत्थ विरहो, इयरहा भाया रक्खइ, तेन य सरिसगो मनूसो पज्जोउत्ति नाम काऊण उम्मत्तओ कओ, भणइ-मम एस भाया सारवेमि नं, कि करेमि ? एरिसो भाइणेहो, सो रुट्ठो रुट्ठो नासइ, पुणो हक्कविऊण रडतो पुणो २ आणिज्जइ उट्ठेह रे अमुगा अमुगा अहं पज्जोओ हीरामित्ति, तेन सत्तमे दिवसे दूती पेसिया, एउ एक्कल्लउत्ति भणिओ आगओ, गवक्खए विलग्गो, मनुस्सेहिं पडिबद्धो पल्लंकेण समं, हीरइ दिवसओ नयरमज्झेण, विहीकरणमूलेण पुच्छिज्जइ, भणइ-विज्जधरं ज्जइ, अग्गओ आसरहेहिं उक्खित्तो पाविओ रायगिहं, सेणियस्स कहियं, असिं अछित्ता आगओ, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003329
Book TitleAgam Suttani Satikam Part 25 Aavashyaka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year2000
Total Pages356
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_aavashyak
File Size19 MB
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