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________________ पदं-१७, उद्देशकः-४, द्वार ७३ नील-बंधुजीवेइवा, भवेयारूवे?, गो०! नोइणढे समढे, एत्तोजाव अमणामयरिया चेव वन्नेणं प० काउलेस्सा णं भं० ! केरिसिया वन्नेणं पन्नत्ता?, गोयमा ! से जहानामएखदिरसारए इ वा कइरसारएइवाधमाससारे इवातंबेइवा तंबकरोडेइवा तेवच्छिवाड़ियाएइवा वाइंगणिकुसुमे इ वा कोइलच्छदकुसुमे इ वा जवासाकुसुमे इ वा, भवेयारूवे ?, गोयमा ! नो इणढे समढे, काउलेस्सा णं एत्तो अनिट्ठयरिया चेव जाव अमणामयरिया चेव, तेउलेस्सा णं भंते ! केरिसिया वन्नेणं पन्नत्ता?, गोयमा ! से जहानामए ससरुहिरए इवा उरभरुहिरे इ वा वराहरुहिरे इवा संबररुहिरे इ वा मणुस्सरुहिरे इ वाइंदगोपे इवा बालेंदगोपेइ वा बालदिवायरे इ वा संझारागे इवागुंजद्धरागे इवाजातिहिंगुले इ वा पवालंकुरे इवा लक्खारसे इवा लोहियक्खमणी इवा किमिरागकंबले इवागयतालुएइवा चीणपिट्टरासी इवापरिजायकुसुमे इवाजासुमणकुसुमे इवा किंसुयपुप्फरासीइवारत्तुप्पले इवारत्तासोगेइवा रत्तकणवीरएइवा रत्तबंधुयजीवए इवा, भवेयारूवे?, गोयमा! नो इणढे समढे, तेउलेसाणं एत्तो इठ्ठतरिया चेव जाव मणामतरिया चेव वनेणं पन्नत्ता, पम्हले० भंते! केरिसिया वन्नेणं पन्नत्ता?, गोयमा! से जहनामए चंपे इवा चंपयछल्ली इ वाचंपयभेदेइवाहालिद्दाइवा हालिद्दगुलिया इवाहालिद्दभेदे इ वा हरियाले इ वा हरियालगुलिया इ वा हरियालभेदे इ वा चिउरे इ वा चिउररागे इ वा सुवन्नसिप्पी इ वा वरकणगणिहसे इ वा वरपुरिसवसणे इ वा अल्लइकुसुमे इ वा चंपयकुसुमे इ वा कण्णणियारकुसुमे इ वा कुहंडयकुसुमे इवा सुवण्णजुहियाइ वा सुहिरनियाकुसुमे इवा कोरिंटमल्लदामे इ वा पीतासोगेइ वा पीतकणवीरे इवा पीतंबंधुजीवए इवा, भवेयारूवे?, गोयमा! नो इणढे समटे, पम्हलेस्साणं एत्तो इट्टतरिया जाव मणामयरिया चेव वन्नेणं पन्नत्ता, सुक्कलेस्सा णं भंते ! केरिसिया वनेणं पन्नत्ता?, गोयमा! से जहानामए अंके इ वा संखे इवा चंदे इ वा कुंदे इ वा दगे इ वा दगरए इवा दधी इवा दहिघने इवा खीरे इवा खीरपूरए इवा सुक्कच्छिवाडिया इ वा पेहुणइमिंजिया इ वा धंतधोयरुप्पपट्टे इ वा सारदबलाहएं इ वा कुमुददले इवा पोंडरीयदले इवा सालिपिट्ठरासीति वा कुडगपुप्फरासीति वा सिंदुवारमल्लदामेइवा सेयासोए इवा सेयकणवीरे इ वा सेतबंधुजीवए इवा, भवेयारूवे?, गो० ! नो इणढे समढे, सुक्कलेसाणं एत्तो इट्टतरिया चेव मणुण्णयरिया चेव वन्त्रेणं पन्नत्ता, एयाओणंभंते! छल्लेसाओ कइसु वन्नेसु साहिजंति?, गोयमा! पंचसु वन्नेसु साहिजंति, तंजहा-कण्हलेसा कालए णं वन्नेणं साहिज्जति नीललेस्सा नीलवन्नेणं साहिज्जति काउलेस्सा काललोहिएणं वन्नेणं साहिञ्जति तेउलेस्सा लोहिएणं वन्नेणं साहिजति पम्हलेस्सा हालिदएणं वन्नेणं सलाहिजइ सुक्कलेस्सा सुकिल्लएणं वन्नेणं साहिज्जति । ७. 'कण्हलेसा णं भंते ! वण्णेणं केरिसिया पन्नत्ता' इत्यादि, कृष्णद्रव्यात्मिका लेश्या कृष्णलेश्या, कृष्णलेश्यायोग्यानिद्रव्याणि इत्यर्थः, तेषामेव वर्णादिसंभवात् नतु कृष्णद्रव्यजनिता भावरूपा कृष्णलेश्या, तस्या वर्णाद्ययोगात्, भदन्त ! कीशी वर्णेन प्रज्ञप्ता ?, भगवानाह-गौतम ! स लोकप्रसिद्धो यथानामको 'जीभूत इति वा' जीमूतो बलाहकः, स चेह प्रावृटप्रारम्भसमयभावी जलभृतो वेदितव्यः,तस्यैव www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.003315
Book TitleAgam Suttani Satikam Part 11 Pragnapana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year2000
Total Pages342
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size19 MB
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