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प्रज्ञापनाउपाङ्गसूत्रम् - २-२५/-/-/५४७
अष्टविधवेदका मिथ्यादृष्टयादयः सूक्ष्मसम्परायान्ताः, तेषामवश्यमष्टानमपि कर्मणामुदयभावात्, चतुर्विधवेदकः सयोगिकेवली, तस्य घातिकर्मचतुष्टयोदयाभावात्, बहुवचने सप्तविधवेदकाः कादाचित्का इति भङ्गत्रयम् ।
पदं - २५ - समाप्तम्
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पदं - २६-कर्म "वेद-बन्ध"
वृ. अधुना षड्विंशतितममारभ्ये, तत्र चेदमादिसूत्रम्
मू. (५४८) कति णं भंते! कम्मपगडीओ पन्नत्ताओ, गो० ! अट्ठ कम्मपगडीओ पन्नत्ताओ, तं०- नाणा० जाव अंतराइयं, एवं नेरइयाणं जाव वेमाणियाणं,
जीवे णं भंते! नाणावरणिज्जं कम्मं वेदेमाणे कति कम्मपगडीओ बंधति ?, गो० ! सत्तविहबंध वा अट्ठविहबंध वा छव्विहबंधए वा एगविहबंधए वा,
नेरइए णं भंते! नाणावरणिज्जं कम्मं वेदेमाणे कति कम्म० बंधति ?, गो० ! सत्तविहबंधए वा अट्ठवि०, एवं जाव वेमाणिते, एवं मणूसे जहा जीवे, जीवा णं भंते! नाणावरणिज्जं कम्मं वेदेमाणा कति०! कममपगडीतो बंधंति !,
गो० ! सव्वेवि ताव होना सत्तविहबंधगा य अट्ठविह० १ अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य छव्विहबंधगे य २ अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य छव्विहबंधगा य छव्विहबंधगा य ३ अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य एगविहबंधए य ४ अहवा सत्तविहबंधगा य अट्टविहबंधगा य एगविहबंधगा य ५ अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठवि० छव्विहबंधए य एगविहबंधए य ६ अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठवि० छव्विहबंधए य एगविहबंधगा य ७ अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठवि० छव्विह० एगविहबंधए य ८, अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ट० छविह० एगविह० ९, एवं एते नव भंगा, अवसेसाणं एगिंदियमणूसवज्जाणं तियभंगो जाव वेमाणियाणं,
एगिंदियाण सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबं०, मणूसाणं पुच्छा, गो० ! सव्वेवि ताव होज्जा सत्तविहबंधगा 9 अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगे य २ अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य ३ अहवा सत्तविहबंधगा य छव्विहबंधए य ४, एवं छव्विहबंधएणवि समं दो भंगा, एगविहबंधएणवि समं दो भंगा, अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधए य छव्विहबंधए य चभंगो 9 अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधए य एगविहबंधगे य चउभंगो २, अहवा सत्तविहबंधगा य छव्विहबंधए य एगविहबंधए य चटउभंगो ३ अहवा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधए य छव्विहबंधए य एगविहबंधए य भंगा अट्ठ, एवं एते सत्तावीसं भंगा, एवं जहा नाणावरणिज्जं तहा दंसणावरणिज्जंपि अंतराइयंपि,
जीवे णं भंते! वेदणिज्जं कम्मं वेदेमाणे कति कम्मपगडीतो बंधति ?, गो० ! सत्तविहबंधते वा अडविहबंधते वा छव्विहबंधए वा एगविहबंधए वा अबंधेवा, एवं मणूसेवि, अवसेसा नारयादीया सत्तविहबं० अट्ठविहबं० एवं जाव वेमाणिता । जीवा णं भंते! वेदणिज्जं कम्मं वेदेमाणा कति० बंधंति ?, गो० ! सव्वेवि ताव होज्जा सत्तविहबंधगा य अट्ठाविहबंधगा य एगविहबंधगा
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