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________________ २५३ पदं-१०, उद्देशकः-, द्वारंएवंजाव आयते, परिमंडलेणंभंते! संठाणेअनंतपएसिए किं संखेजपएसोगाढे असंखेजपएसोगाढे अनंतपएसोगाढे?, गो०! सिय संखेज्जपएसोगाढे सिय असंखेज्जपएसो गाढे नो अनंतपएसोगाढे, एवंजाव आयते । परिमंडलेणं भंते ! संठाणे संखेज्जपएसिए संखेज्जपएसोगाढे किं चरमे अचरमे चरमाइं अचरमाइंचरमंतपएसा अचरमंतपएसा?, गो० ! परिमंडलेणं संठाणे संखेज्जपएसिए संखेजपएसोगाढे नो चरमे नो अचरमेनो चरमाइंनो अचरमाइंनो चरमंतपएसानोअचरमंतपएसा, नियमं अचरमं चरमाणि य चरमंतपएसा य अचरमंतपसा य, एवंजाव आयते, परिमंडले णं भंते ! संठाणे असंखेजपएसिए संखेजपएसोगाढे किं चरमे० पुच्छा, गो०! असंखेजपएसिए संखेज्जप- एसोगाढे जहा संखेज्जपएसिए, एवं जाव आयते, परिमंडलेणंभंते! संठाणे असंखेजपएसिए असंखेजपएसोगाढे किं चरमे पुच्छा, गो० ! असंखिज्जपएसिए असंखिज्जपएसोगाढे नो चरमे जहा संखेजपदेशोगाढे एवं जाव आयते, परिमंडलेणंभंते ! संठाणे अनंतपएसिए संखिजपएसोगाढे किं चरमे० पुच्छा, गो०! तहेवजाव आयते, अणनतपएसिए असंखेज्जपएसोगाढे जहा संखेजपए-सोगाढे, एवं जाव आयते। परिमंडलस्स णं भंते ! संठाणस्स संखेज्जपएसियस्स संखेज्जपएसोगाढस्स अचरिमस्स य चरिमाण य चरमंतपदेसाण य अचरमंतपएसाण य दब्बठ्ठयाए पएसट्ठयाए दव्वट्ठपएसटठयाए कयरेशहिंतो अ० ब० तु०वि०?, गो०! सव्वत्थोवे परिमंडलस्स संठाणस्स संखेजपएसियस्स संखेजपएसोगाढस्स दव्वट्ठयाए एगे अचरिमे चरिमाइं संखेजगुणाई अचरमंचरमाणि य दोऽवि विसेसाहियातिं पदेसट्टयाए सव्वत्थोवा परिमंडलस्स संठाणस्स संखिज्जपएसियस्स संखेजपएसोगाढस्स चरमंतपएसाअचरमंतपएसा संखेजगुणा चरमंतपएसा य अचरमंतपएसा य दोऽवि विसेसाहिया दव्वट्ठपएसट्टयाए सव्वत्थोवे परिमंडलस्स संठाणस्स संखेजपएसियस्स संखेजपएसोगाढस्स दव्वट्ठयाएएगे अचरिमे चरिमाइंसंखेजगुणातिअचरमंचचरमाणियदोवि विसेसाहियातिं चरमंतपएसा संखेज्जगुणा अचरिमंतपएसा संखेज्जगुणा चरिमंतपएसा य अचरमंतपएसा यदोवि विसेसाहिया एवं वट्टतंसचउरंसायएसुवि जोएयव्वं । परिमंडलस्स णं भंते ! संठाणस्स असंखेजपएसियस्स संखेज्जपएसोगाढस्स अचरमस्स चरमाण य चरमंतपएसाण य अचरमंतपएसाण य दव्वट्ठयाए पएसट्टयाए दवट्ठपएसट्ठयाए कयरे २ हिंतोअ० ब० तु० वि०?, गो०! सव्वत्थोवे परिमंडलस्स संठाणस्स असंखेज्जपएसिअस्स संखेजपएसोगाढस्स दव्वट्ठयाए एगे अचरमे चरमातिं संखेज्जगुणाति, अचरमं च चरमाणि य दोवि विसेसाहियातिं पदेसठ्ठयाते सव्वत्थोवा परिमंडलसंठाणस्स असंखेजपएसियस्स संखेज्जपएसोगाढस्स चरमंतपएसा अचरमंतपएसा संखिज्जगुणा चरमंतपएसायअचरमंतपएसा यदोवि विसेसाहिया दव्वट्ठयाएसट्टयाए सव्वत्थोवे परिमंडलस्स संठाणस्स असंखेज्जपएसियस्स संखेजपएसोगाढस्स दव्वट्ठयाए एगे अचरिमे चरमातिं संखेजगुणाति अचरमं च चरमाणि य दोवि विसेसाहियातिं चरमंतपएसा संखेज्जगुणा अचरमंतपएसा संखेनगुणा चरमंतपएसा य अचरमंतपएसा य दोवि विसेसाहिया, एवं जाव यआते । परिमंडलस्सणंभंते ! संठाणस्सअसंखेज्जपएसियस्स असंखेजपएसोगाढस्स अचरमस्स चरमाण य चरमंतपएसाण य अचरमंतपएसाण य दव्वट्ठयाए पएसट्ठयाए दवट्ठपएसट्टयाए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003314
Book TitleAgam Suttani Satikam Part 10 Pragnapana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year2000
Total Pages324
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size19 MB
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